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रूप विचार
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कर्ता प्रथमा में मुद्धा + सि विभक्ति का लोप होकर रूप होगा मुद्ध या मुद्धा । प्राकृत में केवल दीर्घ मुद्धा होता है किन्तु अपभ्रंश में आ का अ भी होता है।
बहुवचन मुद्धा + जस् को उ तथा ओ-मुद्धाउ तथा मुद्धाओ रूप होगा। उ तथा ओ कर्ता एक वचन पुल्लिंग में होता है। किन्तु प्राकृत में भी स्त्रीलिंग के बहुवचन में उ तथा ओ होता है। यही रूप अपभ्रंश के स्त्रीलिंग में भी सुरक्षित है।
(2) द्वितीया में मुद्धा + अम् का लोप होकर मुद्ध, मुद्धा रूप बना। प्राकृत का अनुस्वार घिसते घिसते अपभ्रंश में अ मात्र अवशिष्ट रहा जो कि मुद्धा के आ में मिल गया या उस अ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया । बहुवचन का रूप प्रथमा बहुवचन की भाँति ही होगा। प्राकृत में भी यही उ, ओ विभक्ति होती है। अतः अपभ्रंश में उसी का सुरक्षित रूप है।
(3) तृतीय-मुद्ध+ टा8 के स्थान पर ए होकर रूप मुद्धए-होगा। पी० एल० वैद्य ने मुद्धइ रूप भी माना है। प्राकृत में टा के स्थान पर तीन प्रत्यय होते हैं-आअ, आइ, तथा आए। अपभ्रंश में केवल ए अवशिष्ट रहा।
बहुवचन मुद्ध + भिस् के स्थान पर हिं होकर मुद्धहिं रूप बनता है। पुल्लिंग अकारान्त में एहिं तथा हिं होता है। प्राकृत हि, हिं, हिं, का हिं मात्र अवशिष्ट रहा।
(4) पञ्चमी में मुद्ध+ ङसि के स्थान पर हे मुद्धहे रूप बनता है। मुद्धहि रूप भी बन सकता है। इसका विकास क्रम प्राकृत हितो से किया जा सकता है-मुद्धाहिंतो > मुद्धाहिं > मुद्धहि > मुद्धहे।
___ बहुवचन मुद्ध + भ्यस की जगह हु होकर मुद्धहु रूप बना। प्राकृत के स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग दोनों की कई विभक्तियों में सुन्तो भी है। उसी का विकसित रूप अपभ्रंश पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग में हुं एवं हु
है।