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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
. 2. ऋ का आ में परिवर्तन :- यह परिवर्तन प्रायः प्रेरणार्थक क्रियाओं में पाया जाता है जिसे हम प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का ही विकसित रूप कह सकते हैं। जैसे-वारिया < वारितः = वृ, मारइ, कारइ इत्यादि-हेम० 8/4/330।
___3. ऋ का परिवर्तन इ में-8/4/330 हिअइ < हृदये, दिट्ठी < दृष्टी, मियांक < मृगांक < मिअलोअणी < मृगलोचनी, दिट्ठ < दृष्ट, किय < कृत, किविणु < कृपण, घिय < घृत, दिक्ख < * दृक्ष-दृश = कभी कभी हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में देख या देक्खन्त रूप भी मिलता है। अमिअ < अमृत, निग्घिण < निघृण, सुकिय < सुकृत।
4. ऋ का कभी-कभी ई में भी परिवर्तन पाया जाता है-दीसइ < दृश्यति, हेमचन्द्र के अपभ्रंश के दो दोहे में यह कई बार प्रयुक्त हुआ
है।
5. ऋ का उ में परिवर्तन-सुमरि < स्मर=स्मृ, सुमिरिज्जइ, पुच्छइ <, पृच्छति, पुच्छाविय < पृच्छापित, पुहवी < पृथ्वी 8/4/330 कुरु < कुरु-कृ, परहुअ < परभृत, पुट्ठी < पृष्ठ, सुणइ < *सुनति = श्रृणोति, मुअइ < मृत इत्यादि ।
6. ऋ का ऊ में परिवर्तन-इसका उदाहरण हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में नहीं के बराबर मिलता है। फिर भी हस्व उ का दीर्घ होना सरल है।
7. ऋ का ए – गेह < गृह; गेण्हइ < गृह्णाति।
'8. ऋ का रि, री – रिण < ऋण, रिसहो < ऋषभ, रीछ < ऋच्छ।
9. इस तरह कहीं-कहीं ऋ का स्वरूप ही सुरक्षित रहता है। तृणु, गृहणइ इत्यादि।
लू के स्थान पर अपभ्रंश में इ और इलि रूप होता है-किन्नो, किलिन्नो < क्लुन्न। किलित्त < क्लुप्त हेम० 8/1/115।