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अपभ्रंश और देशी
प्रयुक्त हुआ है। देशी यानी देशी भाषा का प्रयोग प्राकृत" के लिये भी हुआ है। देशी या देशी भाषाएँ (प्रादेशिक भाषाएँ ) भिन्न-भिन्न प्रदेशों के निवासी आर्य लोगों की कथ्य भाषाएँ थीं। पं० हरगोविन्द दास के शब्दों में देशी भाषाओं का पंजाब और मध्यदेश की कथ्य भाषा के साथ अनेक अंशों में जैसे सादृश्य था वैसे किसी किसी अंश में भेद भी था । जिस-जिस अंश में इन भाषाओं का पंजाब और मध्यदेश की प्राकृत भाषा के साथ भेद था उनमें से जिन भिन्न-भिन्न नामों ने और धातुओं ने प्राकृत साहित्य में स्थान पाया है वे ही हैं प्राकृत के देशी या देश्य
शब्द |
अपभ्रंश के देशी आदेश तथा देशी नाममाला से तुलना
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हेमचन्द्र के देशी आदेश और देशी का क्या संबन्ध है, यह भी विचारणीय प्रश्न है । व्याकरण में 'आदेश' और 'आगम' का प्रयोग विशेष पारिभाषिक अर्थ में होता है । साधारणतः संस्कृत के पंडित लोग इन पारिभाषिक शब्दावलियों की व्याख्या करते हुए कहते हैं आगमः मित्रवद् भवति और आदेशः शत्रुवद् भवति । आगम से वर्णों में विकार भर होता है किन्तु आदेश किसी शब्द के स्थान पर होता है अर्थात् किसी ‘शब्दप्रयोग' के स्थान पर कोई दूसरा शब्दप्रयोग होता है परन्तु अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता। संस्कृत वैयाकरणों के यहाँ कहा जाता है कि जैसे गुरु के स्थान पर यदि गुरूपुत्र को बिठाया जाय तो उसके साथ भी गुरूवत् व्यवहार होता है, उसी प्रकार जिस शब्द के स्थान पर जो आदेश होता है उसमें भी वे ही भाव होते हैं जो कि पहले में थे। हेमचन्द्र ने अपने अपभ्रंश व्याकरण में कुछ देशी आदेश किए हैं जो कि तत् तत् संस्कृत शब्दों के अर्थों के द्योतक हैं। इसके साथ ही अपभ्रंश दोहों में कुछ ऐसे भी देशी आदेश पाए जाते हैं जिनका कि सूत्रों द्वारा आदेश नहीं किया गया है पर वे हैं देशी ही ।
हेमचन्द्र ने देशी नाममाला" में लिखा है कि देशी सिद्धार्थ शब्दानुवादपरक होता है किन्तु धात्वादेश साध्यार्थ परक है । प्राकृत