________________
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
विभाषा मानी गयी है (विशेषो मागध्याम् ) और चाण्डाली मागधी की विकृत बोली है (मागधी विकृतिः) । पुरूषोत्तम ने शावरी को भी मागधी की बोली माना है तथा टक्क देशी या टक्की को संस्कृत और शौरसेनी की मिश्रित विभाषा कहा है (अथ टक्क देशीया विभाषा; संस्कृत शौरसेनयोः ) किन्तु पुरूषोत्तम के ही अनुसार हरिश्चन्द्र ने टक्की को अपभ्रंश की बोली कहा है।
226
पुरूषोत्तम आदि वैयाकरणों ने अपभ्रंश की प्रधान बोली नागरक माना है। नागरक की कुछ प्रमुख विशेषताएँ बतायी जाती हैं :अ उ दो स्वर में भी विभक्त हो जाता है ।
श, ष का स, य का ज, न का ण होता है; अल्प प्राण क और ग प्रायः लुप्त हो जाते हैं। प को ब, फ को भ और ख, घ थ तथा ध को ह हो जाता है, एवं क, ख, त, थ का क्रम से ग, घ, द और ध होता है।
व्यास > ब्रास, भूत> भुह, स्वच्छन्द > चच्छन्द । क्रिया कृ, गम, भू > कर, गम, हो क्रम से होता है । त्वदीय, मदीय > तुम्हार, अम्हार होता है ।
यावत, तावत > जिम, तिम,
ण, णइ, णावइ, णहम, जिम, जणि, आदि इव के भाव में प्रयुक्त होता है।
कइ, किंप्रदु, किंप्रु, किर (कीर ) किं के भाव में प्रयुक्त होता है। पुरुषोत्तम ने अपभ्रंश का दूसरा भेद 'ब्राचड' बोली की कुछ प्रमुख विशेषताएँ दी हैं :
ष, स> श
च का उच्चारण स्पष्ट तालव्य में होता है, त, ध का उच्चारण अस्पष्ट होता है । त, द का त, द होता है ।
एव > जे, ज्जि, भू > भो आदि ।