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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
व्याकरण के 8वें अध्याय में धात्वादेश किए गए हैं जिन्हें हेमचन्द्र ने देशी धात्वादेश माना है। फिर भी उन धात्वादेशों का देशी नाममाला में उल्लेख करना उचित नहीं समझा गया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों को भी जो कि क्रियावाची हैं तथा जिनका प्रयोग तिङत की भाँति होता है किन्तु उन्हें व्याकरण के 'धात्वादेश' में नहीं पढ़ा गया है देशी नाममाला में संग्रह कर लिया है। हेमचन्द्र का कहना है कि वह देशी शब्दों की धातुओं पर ध्यान नहीं देता परन्तु वह उनमें से कुछ शब्दों को ले लेता है। इस कार्य में वह पूर्ववर्ती लेखकों का अनुसरण करता है। 1-13 में 'अज्झस' प्राकृत शब्द को संस्कृत धातु ‘आक्रुश' से व्युत्पन्न मानता है। पूर्वाचार्यों की संमति के कारण अज्झस्सं आक्रष्टं को संकलित कर लिया है। दे० ना० मा० 4-11 में 'डोला' को देशी शब्द कहा है। किन्तु उसने प्राकृत व्या० 4, 1, 217 में इसे संस्कृत 'दोला' से व्युत्पन्न माना है। दे० ना० मा० 5-29 में उसने 'थेरो' शब्द को ब्राह्मण अर्थ में देशी माना है किन्तु उनके प्राकृत व्याकरण 1-166 में यह संस्कृत 'स्थविर' से व्युत्पन्न है। इन दोषों से अपने को मुक्त करते हुए हेमचन्द्र ने कहा है कि हमने ऐसे शब्दों को एकत्र किया है जो कि संस्कृतेष्वप्रसिद्धेः या संस्कृतानभिज्ञ प्राकृतज्ञमन्य दुर्विदग्ध जनावर्जनार्थम् हैं । हेमचन्द्र ने बहुत से देशी शब्दों को देशी नाममाला में संकलित किया है जो कि संस्कृत से व्युत्पन्न हैं। इसके अतिरिक्त हेमचंद्र ने आहित्थ, लल्लक्क, विड्डिर आदि ऐसे शब्दों को भी संकलित किया है जिन्हें उसने स्वतः अपने व्याकरण 4-17-4 में प्रांतीय शब्द गिनाया है-महाराष्ट्र विदर्भादि देश प्रसिद्धा । इस तरह हम देखते हैं कि न तो उसने और न उसके उत्तराधिकारियों ने ही स्वतः स्थापित देशी शब्द की व्याख्या के अनुसार कार्य किया है। प्रतीत होता है कि उन्होंने तथा और लोगों ने देशी शब्द को बहुत विस्तृत पैमाने में लिया है। ऐसा मालूम पड़ता है कि उन लोगों ने प्राकृत बोली के सभी शब्दों को जो उनके समय में प्रचलित थे, देशी के अन्तर्गत मान लिया है।
यहाँ पुनः धात्वादेश या क्रियारूप की प्रकृति पर प्रश्न उठ खड़ा होता है। कुछ लेखकों ने स्पष्टतया धात्वादेश को 'देशी' कहा है।