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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
प्राकृत शब्द की व्याख्या से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि प्रथम प्राकृत शब्द विना किसी परिवर्तन के ही संस्कृत से लिए गए हैं; दूसरे प्राकृत शब्द परिवर्तन के साथ-साथ संस्कृत से लिए गए हैं और तीसरे प्रकार के शब्द वे हैं जो संस्कृत से नहीं लिए गए हैं किंतु प्रांतों की विभिन्न बोलियों से या ग्रामीण से आए हुए शब्द हैं और जिनकी जानकारी शब्दकोश से होती है। अभी तक दो शब्दकोशों का पता चल सका है-एक धनपाल का और दूसरा हेमचंद्र का ।
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आचार्य हेमचन्द्र ने देशी नाममाला में देशी शब्दों की व्याख्या करते हुए बताया है कि देशी शब्द वे हैं जो व्याकरण के नियमों से यानी प्रकृति-प्रत्ययादि से सिद्ध नहीं होते और जो संस्कृत शब्दकोशों में भी नहीं पाए जाते तथा जिसकी सिद्धि गौणीलक्षणा द्वारा भी नहीं हो पाती :
जे लक्खण सिद्धाण पसिद्धा सक्कयाहिहाणेसु । ण या गउणलक्खणा सत्तिसंभवा ते इह णिवद्धा । । देशी नाममाला, श्लोक 3
इस पूर्वोक्त लक्षण से देशी का अर्थ विदेशी शब्दों से होने लगता है जो प्राकृत-अपभ्रंश के शब्दकोशों में है। किंतु हेमचन्द्र का यह मतलब नहीं है। उसका कहना है कि मैंने ऐसे शब्दों को इस कोश में संगृहीत किया है जो सिद्धहेमशब्दानुशासन में प्रकृति प्रत्ययादि के विभाग के द्वारा सिद्ध नहीं हो पाते। मैंने उन शब्दों को भी छोड़ दिया है जिन्हें दूसरे शब्दकोशकारों ने अपने शब्दकोश में रखा है किंतु उन्हें हमने (सिद्धहेमचंद्र 8.4.2) आदेश आदि के द्वारा (बज्जर, पज्जर आदि ) सिद्ध किया है। उसे भी देशी नाममाला में ग्रहण नहीं किया है। मैंने उन शब्दों को भी संकलित किया है जो संस्कृत शब्दकोशों में नहीं पाए जाते किंतु प्रकृति प्रत्यय से सिद्ध किए जा सकते हैं। मैंने उन शब्दों को संकलित नहीं किया है जो संस्कृत शब्दकोशों में नहीं पाए जाते किंतु व्याख्या आदि के द्वारा निष्पन्न किए जा सकते हैं।