________________
अपभ्रंश भाषा
153
व्याकरण सर्वविदितं है। यह वस्तुतः पुरानी गुजराती है और यह बताता है कि यह शौरसेनी या परिनिष्ठित अपभ्रंश की (जो कि वस्तुतः बहुत सी बोलियों का सम्मिश्रण है) बोली थी या कम से कम यह गुजरात के कुछ हिस्सों में बोली जाती थी। हेमचन्द्र की अपभ्रंश का पूर्वी बनारसी बोली से तुलना
हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में पं० केशव प्रसाद मिश्र ने पूर्वी हिन्दी प्रदेश की एक बोली (बनारसी बोली) में बहुत से शब्द रूपों एवं मुहावरों में एकरूपता दिखाई है। इससे कुछ-कुछ यह भी प्रतीत होता है कि यह अपभ्रंश पश्चिमी प्रदेश का ही नहीं अपितु पूर्वी प्रदेश की भाषा का भी प्रतिनिधित्व करती है। उदाहरणअपभ्रंश
बनारसी (i) दिअहा जंति झडप्पडहिं दिनवाँ जॉय झटपट्य (ii) पडहिं मनोरह पच्छ
पडय मनोरथ पाछ (iii) वट्टइ
वाट्य (iv) पुत्तें जाए कवण गुणु अवगुणु पूत भइले कवण गुन अवन कवन
कवणु मुएण (v) जावप्पी की भुंहडी
जेकर वापेक भुइयाँ (vi) चम्पिज्जइ अवरेण
चांपल जाय अवरे (vii) ओ गोरी मुह निज्जिअउ ओ गोरी मुँह जीतल (viii) वद्दलि लुक्कु मियंकु वदरे लुकल मयंक
(क) इस प्रकार भोजपुरी के जवन, तवन, कवन आदि रूप शुद्ध अपभ्रंश के हैं।
(ख) वट्टइ रहइ का उच्चारण वाट्य रह्य होता है।
(ग) कर, जेकर, तेकर, कन्ताक आदि शब्द अपभ्रंश के संबंध वाचक से विकसित हुए हैं।
मुइले