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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
उद्धरणों में जो दोहे पेश किये हैं वे विविध प्रकार के हैं। विभिन्न स्थानों के रचयिताओं की रचनाओं के हैं। इससे यह कहना कि हेमचन्द्र का अपभ्रंश व्याकरण गुर्जर अपभ्रंश का प्रतिनिधित्व करता है उसे सीमा के अन्तर्गत बांधना है। गुजरात के होते हुए भी हेमचन्द्र ने परिनिष्ठित अपभ्रंश का व्याकरण लिखा है। हेमचन्द्र का काल 12वीं शताब्दी माना जाता है। इस समय तक अपभ्रंश भाषा का साहित्य समृद्ध हो चुका था। यह परिष्कृत रुचि वालों की भाषा हो चुकी थी। क्योंकि अन्यत्र हेमचन्द्र ने स्वतः काव्यानुशासन में ग्राम्य अपभ्रंश का भी उल्लेख किया है यानि लोक भाषा का उल्लेख किया जो कि उस समय शनैः-शनैः प्रकाश में अर्थात् साहित्य रूप में भी कहीं-कहीं परिलक्षित होने लगा था। अगर इस समय तक अपभ्रंश जनभाषा होती ही तो इस तरह का भेद उत्पन्न करने की आवश्यकता न होती। दूसरी बात विशेष रूप से ध्यान देने की यह है कि हेममन्द्र ने अपभ्रंश व्याकरण की रचना में उद्धरण स्वरूप दोहों को पेश किया है जो कि विविध समय में रचे गये थे। वस्तुतः किसी भी भाषा का व्याकरण तभी लिखा जाता है जबकि उसमें प्रचुर साहित्य लिखा जा चुका हो । भाषा में एकरूपता बनाये रखने के लिये ही व्याकरण रचा जाता है। यह सिद्ध हो चुका है कि हेमचन्द्र ने जिन दोहों का उपयोग अपभ्रंश व्याकरण में किया है वे विविध लोगों की रचनाएँ हैं। ऐसा इसलिये किया कि जिससे अपभ्रंश की व्यापकता पर ध्यान बना रहे। वह सीमित लोगों के लिये ही नहीं लिखा गया था। अगर वह केवल जैन भिक्खुओं के लिये ही लिखा गया होता तो नीति सम्बन्धी, वीरता सम्बन्धी एवं श्रृंगार सम्बन्धी दोहों का संकलन वे कभी नहीं करते। उन दोहों में भक्ति सम्बन्धी जो दोहे हैं वे केवल जैनियों से ही सम्बन्धित न होकर ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी भी हैं। गंगा की महिमा का वर्णन, महाभारत की कथा का निदर्शन एवं पुराण प्रसिद्ध राजा बलि का चित्रण आदि से विदित होता है कि हेमचन्द्र का आधार विस्तृत था, सीमित नहीं। आजकल की तरह उस काल में यातायात सुविधा नहीं थी। अतः उपलब्ध सामग्री के आधार पर उन्होंने जिस