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अपभ्रंश भाषा
अथवा छन्दतः कार्यः देशभाषा प्रयोक्तृभिः । ना० शा० 18/34
नाना देशसमुत्थं हि काव्यं भवति नाटके । ।
ना०शा० 18/35
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देश भाषाओं पर विचार करने के बाद उसने सात भाषाओं का उल्लेख किया है— मागधी, अवन्ती, प्राच्या, शौरसेनी, अर्धमागधी, वाहलीका और सातवाँ दाक्षिणात्या :
मागध्यवन्तिजा
प्राच्या
शूरसेन्यर्धमागधी ।
वाह्लीका दाक्षिणात्या च सप्त भाषाः प्रकीर्तिताः । ।
ना० शा० 18/35-36
इसके बाद उसने बहुत सी विभाषाओं का भी उल्लेख किया है जिनमें शबर, आभीर, चाण्डाल और द्रविड़ों के साथ औड्रज लोग एवं निम्न स्तर के जंगली लोग भी हैं
शबराभीरचण्डालसचरद्रविडोड्रजाः ।
हीना वनेचराणा च विभाषा नाटके स्मृता । । 35
ना० शा० 18/36-37
इन विभाषाओं के उल्लेख में भरत ने कहीं भी अपभ्रंश का उल्लेख नहीं किया है। अपभ्रंश नाम का उल्लेख न करने का कारण स्पष्ट है कि उस समय की साहित्यिक भाषा का नाम 'भाषा' था। विभाषा शब्द का प्रचलन उस समय नहीं था। फिर भी इस शब्द का प्रयोग विभिन्न बोली जाने वाली बोलियों के लिए प्रयुक्त होता था । दण्डी ने अपने काव्यादर्श में साहित्यिक अपभ्रंश के लिये जिस आभीरादि शब्द का उल्लेख किया है वह वस्तुतः भरत की विभाषा में प्रयुक्त शबर, आभीर आदि ही हैं। भरत के समय विभाषा ने साहित्यिक भाषा का रूप धारण नहीं किया था । दण्डी ने अपभ्रंश साहित्य के लिए प्रारम्भ में जो आभीर (आदि) शब्द का प्रयोग किया है उससे यही प्रतीत होता है कि दण्डी