________________ भाव लोक - भावलोक दो प्रकार से है। आगम से और नो आगम से। आगम से लोक शब्द के अर्थ को उपयोग सहित जाननेवाला व्यक्तिविशेष भावलोक तथा नो आगम से औदायिक आदि छः भाव रूप लोक भावलोक है। यहाँ नो शब्द सर्वनिषेध अथवा मिश्रवचनरूप है। लोकप्रकाश में चार प्रकार का लोक इस प्रकार उल्लिखित है। द्रव्यलोक - द्रव्य से पंचास्तिकायात्मक लोक। क्षेत्र लोक - क्षेत्र से असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण लोक। काल लोक - काल से भूत में था, भविष्य में रहेगा, वर्तमान काल में है। भावलोक - भाव से पाँच अस्तिकाय लोक है उन अस्तिकायों में गुण और पर्याय रहे हुए है। जिससे लोक अनन्तपर्यायी है। आठ प्रकार के लोक का स्वरूप - नाम लोक तथा स्थापना लोक सुगम है। (3) द्रव्यलोक - रूपी, अरूपी, सप्रदेशी, अप्रदेशी तथा नित्यानित्य जीव-अजीव रूप द्रव्य को द्रव्यलोक कहते है। (4) क्षेत्रलोक - आकाश के प्रदेश जो उपरी भाग में प्रकृष्ट रूप से रहे हुए हो उसे ऊर्ध्वक्षेत्रलोक कहते है। जो मध्य में स्थित हो उसे मध्यक्षेत्रलोक कहते है। तथा जो नीचे भाग में स्थित हो उसे अधोक्षेत्रलोक कहते है। काललोक - समयादि रूप जो काल उसे काल लोक कहते है। समय - आवलीका, मूहुर्त, दिवस, अहोरात्रि, पक्ष, मास, वर्ष, युग, पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी यावत् पुद्गल परावर्तन तक काल कहलाता है। भावलोक - वर्तमान भव स्थिति, देव, नारक, तिर्यंच और मनुष्य आदि चारों गति के जीव अपने भ योग्य कर्मों को भोग रहे है। वह भवलोक कहलाता है। भावलोक - औदायिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और संनिपातिक / इन छ: भावों को भावलोक कहते है अथवा उत्कट राग यानि किसी भी वस्तु पर अत्यंत आसक्ति तथा किसी वस्तु पर अप्रीति उत्पन्न करना द्वेष है। इन राग और द्वेष की जिसने उदीरणा कर दी उस आत्मा के भाव वह भावलोक कहलाता है। ऐसा अनंत जिनेश्वरों ने कहा है। ___ पर्यायलोक - अब अन्तिम पर्याय लोक की विचारणा करते है। सामान्य से पर्याय अर्थात् धर्म पर्यार को धर्म कहा जाता है। यहाँ नैगमनय के अनुसार पर्यायलोक चार प्रकार का है - दव्वगुण-खित्तपज्जव भावाणुभावे अभाव परिणामे। जाण चउव्विहभेअं, पज्जवलोगं समासेण / / (अ) द्रव्यगुण - द्रव्य के जो रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, गति, वर्ण, भेद, द्रव्य के गुण कहे जाते है। जिससे वह द्रव्यगुणपर्यायलोक कहा जाता है। आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIII ( द्वितीय अध्याय | 99