________________ साथ ही मुनिराज पर द्वेषभाव रखे वह स्तंभ के समान है। 4. खरंटक के समान - जो श्रावक धर्मोपदेशक मुनिराज पर भी “तु उन्मार्ग दिखानेवाला मूर्ख अज्ञानी तथा मंदधर्मी है" ऐसे निन्द्य वचन कहे वह श्रावक खरंटक के समान है। निश्चयनय के मत से सपत्नीसमान और खरंटक के समान इन दोनों को मिथ्यात्वी समझना चाहिए ओर व्यवहारनय से श्रावक कहलाते है कारण कि वे जिनमंदिर में जाते है शेष सभी श्रावक है।४६ श्राद्धविधि में रत्नशेखरसूरि ने श्रावक के भेदों का उल्लेख इस प्रकार किया है। नामाईचउभेओ सड्ढो भावेण इत्थ अहिगारो। तिविह अ भावसड्डो दसण वय उत्तरगुणेहिं॥ 1. नाम 2. स्थापन 3. द्रव्य और 4. भाव चार प्रकार के श्रावक होते है तथा भावश्रावक 1. दर्शनश्रावक 2. व्रतश्रावक 3. उत्तरगुण श्रावक तीन प्रकार के होते है। 1. नाम - जिसमें शास्त्रोक्त कथनानुसार श्रावक के लक्षण नहीं हो जैसे कोई 'ईश्वरदास' नाम धारण करें पर वह दरिद्री की मूर्ति हो वैसे ही जिसका केवल 'श्रावक' नाम हो वह नाम श्रावक कहलाता है। 2. स्थापना श्रावक - चित्रित की गई अथवा काष्ठ पाषाणादि की जो श्रावक की मूर्ति हो वह स्थापना श्रावक। 3. द्रव्यश्रावक - चण्डप्रद्योत राजा की आज्ञा से अभयकुमार को पकड़ने के लिए कपटपूर्वक श्राविका का वेष करने वाली गणिका की तरह अन्दर से भावशून्य और बाहर से श्रावक के कार्य करे वह द्रव्यश्रावक कहलाता है। 4. भावश्रावक जो भाव से श्रावक की धर्मक्रिया करने में तत्पर हो वह भावश्रावक कहलाता है। भावश्रावक के तीन भेद है। 1. दर्शनश्रावक - श्रेणिकराजा आदि के समान केवल सम्यक्त्वधारी हो वह दर्शन श्रावक। 2. व्रत श्रावक - सुरसुन्दर की स्त्रियों की तरह सम्यक्त्व मूल पाँच अणुव्रत का धारक व्रत श्रावक कहलाता है। 3. उत्तरगुण श्रावक - सुदर्शन श्रेष्ठि श्रावक की तरह पाँच अणुव्रत तथा उत्तरगुण अर्थात् तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत आदि धारण करे वह उत्तरगुण श्रावक कहलाता है। अथवा सम्यक्त्व मूलबारह व्रत धारण करे वह व्रत श्रावक और आनंद, कामदेव आदि की तरह सम्यक्त्व मूलबारहव्रत तथा सर्व सचित्त परिहार, एकाशन, चौथाव्रत, भूमिशयन, श्रावक प्रतिमा और दूसरे भी अभिग्रह धारण करे वह भाव से उत्तरगुण श्रावक है।४८ भाव श्रावक के लक्षण को तथा भेदों का वर्णन करने के पश्चात् बारह प्रकार के श्रावक धर्म का निर्देश किया जाता है। क्योंकि धर्म से जीवन में पुण्य की प्राप्ति होती है, दुर्गति का दलन होता है, सद्गति तरफ गमन होता है, जिससे जीवन में निखार आता है तथा स्वच्छ और सुंदर बनता है। श्रावक के इन बारह व्रतों का वर्णन आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI NA चतुर्थ अध्याय 252