________________ साधक अनेक हेतु है। वे क्रमश: इस प्रकार मैथुन आसेवन में स्व पर दोनों को पाप का प्रसंग आता है। 2. दृढतर रागादि दोषों का प्रसंग आता है। 3. अग्नि में इंधन डालने के दृष्टांत से स्त्री के रूप, स्पर्श आदि के विचार में अधिक अधिक मग्न से शुभध्यान का अभाव होता है। 4. स्त्री के आसेवन से अवश्य प्राणिवध का प्रसंग आता है। जैसे कि मेहूणं भंते। सेवमाणस्स केरिसिए असंजमे कजई ? गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे रुयनालियं वा बूरनालियं वा तत्तेणं कणएणं समभिसंधेज्जा एरिसएणं गोयमा ! मेहुणं सेवमाणस्स असंजमे कज्जइ / 254 ___ श्री भगवती सूत्र का यह प्रमाण है कि हे भदन्त / मैथुन सेवन करनेवाला कैसा असंयम करता है? हे गौतम जिस प्रकार कोई पुरुष एक बड़ी रुनालिका (रु से भरीनालिका) अथवा बूरनालिका (बूर कोमल वनस्पति विशेष से भरी हुई नालिका) को तप्त करन से नाश करता है, उस प्रकार का असंयम मैथुन सेवने वाला करता है। आचार्य हरिभद्र ने धर्मसंग्रहणी में इसी बात को इस प्रकार कही है। जिस प्रकार अत्यंत कोमल रु के पुमों से भरी हुइ नालिका में प्रवेश करता लोहा का सलिया उस पुमों को सर्वथा नाश करता हुआ प्रवेश करता है उसी प्रकार अत्यंत जीवों से संसक्त योनि में पुरुष का साधन अवश्य उन सभी जीवों का नाश करता हुआ प्रवेश करता है।५५ तथा आचार्य श्री हरिभद्रसूरि ने श्री संबोध प्रकरण' में चोथे महाव्रत का स्वरूप तथा बह्मचर्य की महत्ता और विशेष रूप से प्रकट की है वह इस प्रकार - . ___मन-वचन, काया के तीन योग और तीन करण द्वारा देवसंबंधी और औदारिकसंबंधि नव नव भेद गिनने से अठारह प्रकार का ब्रह्मचर्य है / इस प्रकार अठारह भेदों से ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ साधु तीनों काल में कभी स्त्री की इच्छा नहीं करे ! संप्राप्त और असंप्राप्त दोनों भेदो में चौबीस प्रकार का काम है, उसका भी त्याग करे। तथा नव ब्रह्मचर्य गुप्ति का पूर्ण पालन करे तो उस आत्माको महान् पुण्य प्राप्त होता है जैसे कि कोई क्रोड सोना महोर का दान करे अथवा सुवर्ण का जिनभवन बनावे उसका जितना पुण्य नहीं मिलता उतना पुण्य ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले को मिलता है। __ शीलव्रत कुल का आभूषण है शीलव्रत सभी रूपों में उत्तम रूप है शील यही निश्चित पंडितता और शील ही निरूपम धर्म है। शील उत्तम धन है, शील परम कल्याण कारी है, शील सद्गति का कारण है और यह आचार रूपी निधि का स्थान है। यदि कोई एक स्थान में रहता हो, मौनव्रत को धारण करता हो, मुंडित बना हुआ वल्कल की छाल का धारण करने वाला हो अथवा तपस्वी हो लेकिन जो अब्रह्मचर्य की इच्छा रखता होतो वैसा ब्रह्मा भी मुझे अच्छा नहीं लगता है। स्त्रियों की योनि में नव लाख गर्भज जीव उत्पन्न होते हैं। एक दो अथवा तीन और अधिक से अधिक गर्भपृथक्त्व (९गर्भजजीव) पुत्ररूप में उत्पन्न होते है। तथा स्त्रियो की योनि में बेइन्द्रिय जीव असंख्य उत्पन्न होते है और मरते है तथा सम्मूर्छिम भी असंख्य उत्पन्न होते है और मरते है इसी कारण धीर पुरुषों को प्रधान ऐसे ब्रह्मचर्यव्रत को धारण करना चाहिए। स्त्री के | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI TA चतुर्थ अध्याय 292