Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Anekantlatashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut

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Page 543
________________ प्रशस्ति श्री जैन शासन विश्व प्रांगण, परम शुद्ध अनंत है। वीर पटाम्बर विभूषित, श्रमण संघ महंत है। सुधर्म जम्बू प्रभव आदि जगत में जयवंत है। विमल पावन पट्ट क्रम से नित्य प्रति प्रणमंत है।॥ 1 // सोहम परंपर में हुए है, त्यागी तपस्वी सूरीश्वरा। जगच्चंद्र सूरीश तदनु, रत्नसूरीश मुनीश्वरा // वीर वाणी के प्रकाशक, क्षमासूरीश दीनेश्वरा। देवेन्द्रसूरि कल्याणसूरि, पट्टधर हितेश्वरा // 2 // प्रमोदसूरि प्रातापी जगमें, सिद्धि साधक संत थे। प्रभू सूरि राजेन्द्र जगमें, परम दीप्तिवंत थे। साहित्य सर्जक पूज्यवर थे, ज्ञान सागर गुरुवरा। उत्कृष्ट साध्वाचार पालक, जैनशासन जयकरा // 3 // पट्टधर धनचंद्रसूरि, चर्चा चक्री सोहता। श्रीमद् विजय भूपेन्द्रसूरि, पट्ट पर मन मोहता। सूरिवर यतीन्द्र थे, गंभीर गणनिधि गणधरा। सूरि विद्याचन्द्र तसपट, शान्त मूर्ति कविवरा // 4 // जयन्तसेन सूरीश सांप्रत, काल में है गणपति। तस आणपालक श्रमणीवर्या, मान कंचन गुणवती॥ लावण्य श्रीजी गुरुणी शिष्या, शान्त श्री कोमललता। शिष्या अनेकान्तलताश्री यह शोध ग्रन्थ आलेखिता॥५॥ | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व 401

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