________________ सम्यक् ज्ञान अर्थात् देदीप्यमान | प्रकाशपुञ्ज अज्ञान अर्थात् घनघोर अंधकार जिस समय चारो तरफ पृथ्वी पटल पर घने अंधकार की छटा व्याप्त हो ऐसे समय में अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचना अशक्य है। परन्तु उस समय यदि दीपक का सहारा मिल जाए तो व्यक्ति अपने इष्ट मंजिल को सरलता से प्राप्त कर सकता है। बस उसी प्रकार अज्ञान के तिमि में आकंठनिमज्जित बनी आत्मा भव सागर में भ्रमित बन जाती है। लेकिन उसे मिल जाएसम्यज्ञान का प्रकाश पुञ्ज तो वह उस दिव्य आलोक से आलोकित बन अपने लक्ष्य कोसहजता से साध सकता है। आओ तब.... हम सभी मिलकर उस अद्भुत अलौकिक ज्ञान सुधा का पान करने केलिएसमन्वयवाद केशिल्पी, साहित्य के शिरोमणी, शेमुषी के शेवधि आचार्य हरिभद्रसूरिकेदार्शनिक ग्रन्थों केअवगाहन स्वरुप प्रस्तत ग्रन्थ का सहावलोकन कर सम्यकद्धा को अस्थिमज्जावत् बनाए। इसी शुभेच्छा के साथ -सा. डॉ. अनेकान्तलताश्री