Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Anekantlatashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut
View full book text
________________ कर्म के नाम उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति * ज्ञानावरणीय कर्म 30 कोडाकोडी सागरोपम अन्तर्मुहूर्त दर्शनावरणीय कर्म 30 कोडाकोडी सागरोपम अन्तर्मुहूर्त वेदनीय कर्म 30 कोडाकोडी सागरोपम 12 मुहूर्त मोहनीय कर्म 70 कोडाकोडी सागरोपम अन्तर्मुहूर्त आयुष्य कर्म 33 सोगरोपम अन्तर्मुहूर्त नामकर्म 20 कोडाकोडी सागरोपम 8 मुहूर्त गोत्र कर्म 20 कोडाकोडी सागरोपम 8 मुहूर्त अंतराय कर्म 30 कोडाकोडी सागरोपम अन्तर्मुहूर्त यह मूल कर्मों की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति है। इसी प्रकार उत्तर प्रकृतियों की भी भिन्न-भिन्न उत्कृष्ट स्थिति एवं जघन्य स्थिति होती हैं। मूल कर्मों की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति का विवेचन उत्तराध्ययन सूत्र,२९४ तत्त्वार्थ सूत्र,२९५ श्रावकप्रज्ञप्ति,२९६ प्रज्ञापना टीका२९७ कर्मग्रंथ,२९८ नवतत्त्व२९९ एवं पांचवे कर्मग्रन्थ में उत्तर प्रकृतियों, उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति का वर्णन मिलता है। कर्म के स्वामी - जैन कर्म सिद्धान्त में कर्म के स्वामी की चर्चा अनेक प्रकार से की गई है। जैसे कि मूलकर्म के स्वामी, उत्तर प्रकृतियों के स्वामी, प्रकृति, स्थिति-रस और प्रदेश बन्ध के स्वामी, सामान्य से बंध उदय, उदीरणा, सत्ता के स्वामी। लेकिन सामान्य दृष्टिकोण से चिन्तन किया जाय तो आठों कर्मों के स्वामी चारों गति के जीव है। क्योंकि सामान्यतः सर्वज्ञ भगवंतों का यह उपदेश है कि जब तक जीव कम्पता है, धूजता है, चलता है, स्पंदन करता है, क्षोभ पाता है, उन-उन भावों में परिणाम पाता है, तब तक जीव आयुष्य को छोड़कर सात प्रकार के कर्म प्रतिसमय बांधता है। आयुष्य कर्म जीवन में एक बार ही बांधता है।३०१ गुणस्थानक की दृष्टि से देखा जाय तो 1 से 10 गुणस्थानक के जीव ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अंतराय के स्वामी है। वेदनीय के 1 से 13 गुणस्थान के जीव है। आयुष्य कर्म के मिश्र गुणस्थानक के बिना 1 से 6 गुणस्थानक वाले जीव है।३०२ चारों गतियों के जीवों को आठों ही कर्मों का उदय होता है। अतः देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारक चारों गतियों के जीव 8 कर्मों के उदय के स्वामी है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं अंतराय का एक से बारह गुणस्थान तक उदय होता है। मोहनीय का एक से दस गुणस्थान तक उदय होता है। इन चार घाती कर्मों का क्षय हो जाने पर शेष चार वेदनीय आयुष्य नाम और गोत्र कर्मों का 1 से 14 गुणस्थानक तक उदय होता है। अतः ये इनके स्वामी है। आठ कर्मों की सत्ता भी चारों गतियों के जीवों को होती है। जिसमें कर्मों की सत्ता होगी वही सत्तावान् (स्वामी) बनेगा। मोहनीय की सत्ता 1 से 11, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय की सत्ता 1 से 12 और | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIII पंचम अध्याय | 377