Book Title: Haribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Author(s): Anekantlatashreeji
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trsut

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Page 513
________________ न त्वेवाविषयो मोक्षः कदाचिदपि गौतम / / सुंदरं ऐसे वृन्दावन में शियाल का जन्म लेने की इच्छा रखना श्रेष्ठ है। लेकिन जहाँ किसी प्रकार के विषयों का साधन नहीं वैसे मोक्ष की इच्छा हे गौतम ! कदापि नहीं करनी चाहिए। ऐसे महामोह से मोहित बने अकल्याणमय जीवनवाले पुरुष मोक्ष सम्बन्धी तत्त्वों पर द्वेष धारण करते है, वही उनकी संसार वृद्धि का कारण है। लेकिन जिस भव्यात्माओं को मोक्षादिक तत्त्व के प्रति द्वेष नहीं है वे पुरुष धन्य है। उसीसे भव-परंपरा का बीज मोह का त्याग करके कल्याण के सहभागी अवश्य बनते है / ऐसा शास्त्रकार भगवंत कहते है। मोक्ष के उपाय - सद्ज्ञान, दर्शन, चारित्र ये ही मुक्ति के उपाय है। ऐसा तीर्थंकर भगवंतों ने कहा है। उसमें प्रवृति करनेवाले भव्यात्माओं की आत्मगुण के नाश के लिए कोई चेष्टा नहीं होती है। जिस प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना का सर्वोत्कृष्ट फल मोक्ष है। वैसे ही कर्म मल महान् अनर्थकारी होने से उसका सर्वथा नाश करना वही मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय है। मुक्ति के प्रति द्वेष का अभाव वही मोक्ष प्राप्ति का तात्त्विक हेतु है।२५ .. मोक्ष के हेतु अन्य पंडितों के अभिप्राय - मुक्ति प्राप्त हो वैसे शुभ अथवा शुद्ध अध्यवसाय में जितनी मात्रा में विशेष प्रकार की स्थिरता होती है और उस ध्येय को सम्यक् प्राकर से लक्ष्य में रखकर क्रिया अनुष्ठान किये जाते है, वे मोक्ष के हेतु बनते है, ऐसा अन्य मतवाले भी मानते है। विशेष बात करते हुए श्रीमान् कहते है कि कुछ अन्य मतवादी मुक्ति की प्राप्ति में ईश्वर का अनुग्रह मानते है तथा प्रधान प्रकृति के परिणाम को हेतु मानते है। इस प्रकार तत्त्व का वाद करनेवाले मुक्ति में अनेक भिन्न-भिन्न हेतुओं की कल्पना करते है।२६ - मुक्त अवस्था में ज्ञान का सद्भाव - मुक्त अवस्था में चैतन्य परम शुद्ध होने से आत्मा को सभी पदार्थों का ज्ञान सिद्ध ही है, लेकिन सांख्य तंत्र में जो निषेध किया गया है वह प्राकृत इन्द्रिय ज्ञानवाले अज्ञानियों की अपेक्षा से कहा है। आत्मदर्शन से मुक्ति प्राप्त होती है ऐसा सांख्य शास्त्र में न्याय से सिद्ध होता है। उससे मुक्त अवस्था में भी ज्ञान का सद्भाव शास्त्र की युक्ति से सिद्ध ही है।२७ / / __ मोक्ष में सुख है या नहीं - ‘स्वर्ग में सुख होता है' - इस विषय में तो मतभेद नहीं है पर ‘मोक्ष में भी सुख होता है' - इस बात में कोई प्रमाण न होने से मोक्ष सुख का अस्तित्व अमान्य है। इसका समाधान आचार्य हरिभद्रसूरि रचित शास्त्रवार्ता समुच्चय में किया गया - मोक्षसुख के लिए प्रेक्षावान् विवेकी पुरुषों की प्रवृत्ति का होना निर्विवाद है, परन्तु मोक्ष में सुख का अस्तित्व न मानने पर यह प्रवृत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि विवेकी पुरुषों की प्रवृत्ति सुख प्राप्ति के लिए ही हुआ करती है। अतः मोक्ष में यदि सुख प्राप्ति होने की आशा नहीं होगी तो उसके लिए कोई भी विवेकी पुरुष प्रयत्नशील न होगा, इसलिए मोक्ष में सुख का अभाव होने पर उसके लिए विवेकी पुरुषों की प्रवृत्ति की अनुपपत्ति ही ‘मोक्ष में सुख होता है' इस बात में प्राण है।२८ ___ मोक्ष हमारा चरम लक्ष्य का नाम है। जहाँ से फिर आवागमन नहीं होता है। इसे सिद्धि नाम से भी आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIDI00000000000MA सप्तम् अध्याय / 451 2

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