________________ उप्पजंति सुभा वा तेण तओ उड्डलोगोत्ति॥ जो उपरिभाग में स्थित है वह ऊर्ध्वलोक अथवा ऊर्ध्व शब्द शुभवाचक है। शुभक्षेत्र होने से ऊर्ध्वलोक है। तथा क्षेत्र के अनुभाव से द्रव्यों के गुण शुभ परिणाम वाले उत्पन्न होते है। उससे ऊर्ध्वलोक कहलाता है। मज्झणुभावं खेत्तं, जंतं तिरयंति वयण पज्जवओ। भण्णइ तिरिय विसालं, अओ य तं तिरियलोगोत्ति / / जो मध्यम स्वभाववाला क्षेत्र वह तिर्यक्लोक, वचनपर्याय से तिर्यक् शब्द का मध्यम शब्द पर्यायवाचक है। क्षेत्र के अनुभव से प्रायः मध्यम परिणामवाले द्रव्य होते है। अथवा तिर्यक्-विशाल होने से तिर्यग्लोक कहलाता है।१०० लोकप्रकाश'०१ में भी इसी प्रकार का निर्देश किया गया है। चार प्रकार से लोक का स्वरूप इस प्रकार है। द्रव्यलोक - आगम से नो आगम से। आगम से द्रव्यलोक - लोक शब्द के अर्थ को जाननेवाला लेकिन उपयोग शून्य वह द्रव्यलोक कहलाता है। नो आगम से तीन प्रकारका है। (1) ज्ञ शरीर (2) भव्यशरीर (3) तद्व्यतिरिक्त। (1) ज्ञ - जिसने लोक शब्द के अर्थ को सम्पूर्ण जान लिया है और आयुष्यपूर्ण होने पर अवसान को प्राप्त हो गया है ऐसा मृतावस्था में रहा हुआ शरीर ज्ञ शरीर द्रव्यलोक कहलाता है। घृतकुम्भ के समान - जैसे कि- किसी घड़े में घृत भरा हो बाद में वह खाली हो गया हो तो भी उस घडे को घृतकुम्भ अर्थात् घी भरने का घड़ा कहते है। अथवा फूट जाने पर भी घृतभरने का घड़ा था। ऐसा बोलते है। उसी प्रकार 'ज्ञ' शरीर को द्रव्यलोक कहते है। 'नो' का यहाँ सर्व निषेध अर्थ समझना चाहिए। क्योंकि इस समय इसमें आगम का बिल्कुल अर्थ नहीं है। (2) भव्य शरीर - लोक शब्द को जानेगा ऐसा सचेतन भव्य शरीर क्योंकि भावि में वह लोक के अर्थ का ज्ञाता बनेगा। अतः भव्य शरीर द्रव्यलोक कहलाता है। मधुकुम्भ के समान। जैसे कि - मधु भरने के लिए लाया हुआ घड़ा कोई अन्य काम के लिए ले ले तो अपन कहते है कि यह घड़ा तो मधु भरने के लिए लाया है। अर्थात् भविष्य में इसमें मधु भरना है। अतः यह घड़ा भव्यशरीर कहलाता है। __यहाँ भी नो शब्द सम्पूर्ण निषेधात्मक अर्थ में है, क्योंकि इस समय भव्य शरीर में लोक शब्द का अंशमात्र भी बोध नहीं है। लेकिन भविष्य में प्राप्त करने की योग्यता होने से भव्यशरीर कहते है। ___ तद्व्यतिरिक्त - तद्व्यतिरिक्त द्रव्यलोक से द्रव्यों को ग्रहण करना है। जैसे कि - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल आदि। यहाँ भी नो शब्द सम्पूर्ण निषेध अर्थ में है। क्योंकि द्रव्य को आगम के ज्ञान का अभाव होने से। क्षेत्र लोक - ऊर्ध्वलोक, अधोलोक, ति लोक। काल लोक - समयादि रूप जो काल वह काललोक है। | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI द्वितीय अध्याय | 98