________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायात् ।
धर्मादिकके स्वरूपको विपर्ययरूप मानना इसको विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं जैसे हिंसासे खर्गादिककी प्राप्ति होती है।
सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि देव गुरु तथा उनके कहे हुए शास्त्रों में समान बुद्धि रखनेको विनयमिथ्यात्व कहते हैं । जैसे जिन और बुद्ध तथा उनके धर्मको समान समझना ।
समीचीन तथा असमीचीन दोनों प्रकारके पदार्थों में से किसी भी एकका निश्चय न होना इसको संशय मिथ्यात्व कहते हैं । जैसे सग्रन्थ लिङ्गमोक्षका साधन है या निर्ग्रन्थ लिङ्ग, अथवा सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र इनकी एकता मोक्षका साधन है अथवा यागादि कर्म । कोंके सर्वथा अभावसे अनन्तगुणविशिष्ट आत्माकी शुद्ध अवस्थाविशेषको मोक्ष कहते हैं यद्वा बुद्धि आदि विशेषगुणों के अभावको मोक्ष कहते हैं । __ जीवादि पदार्थोंको “यही है" "इसी प्रकार है" इस तरह विशेषरूपसे न समझनेको अज्ञानमिथ्यात्व कहते हैं।
इस प्रकार सामान्यसे मिथ्यात्वके ये पांच भेद हैं विस्तारसे असंख्यातलोकप्रमाणतक भेद हो सकते हैं। उक्त मिथ्यात्वके पांच भेदोंके दृष्टान्तोंको दिखाते हैं ।
एयंत बुद्धदरसी विवरीओ ब्रह्म तावसो विणओ। इंदो विय संसइयो मकडियो चेव अण्णाणी ॥ १६ ॥ एकान्तो बुद्धदर्शी विपरीतो ब्रह्म तापसो विनयः ।
इन्द्रोपि च संशयितो मस्करी चैवाज्ञानी ॥ १६ ॥ अर्थ- ये केवल दृष्टान्तमात्र हैं इसलिये प्रत्येकके साथ आदि शब्द लगालेना चाहिये अर्थात् बौद्धादिमतवाले एकान्तमिथ्यादृष्टि हैं । याज्ञिक ब्राह्मणादि विपरीत मिथ्यादृष्टि हैं । तापसादि विनयमिथ्यादृष्टि हैं, इन्द्रनामक श्वेताम्बर गुरु प्रभृति संशयमिथ्यादृष्टि हैं, और मस्करी आदिक अज्ञानी हैं । उक्त मिथ्यात्वके लक्षणको दूसरे प्रकारसे कहते हैं।।
मिच्छंतं वेदंतो जीवो विवरीयदंसणो होदि । ण य धम्म रोचेदि हु महुरं खु रसं जहा जरिदो ॥१७॥
मिथ्यात्वं विदन् जीवो विपरीतदर्शनो भवति ।। ___ न च धर्म रोचते हि मधुरं खलु रसं यथा ज्वरितः ॥ १७ ॥ अर्थ-मिथ्यात्व प्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होनेवाले मिथ्या परिणामोंका अनुभवन करनेवाला जीव विपरीत श्रद्धानवाला हो जाता है । उसको जिसप्रकार पित्तज्वरसे युक्त जीवको मीठारस भी अच्छा मालुम नहीं होता उस ही प्रकार यथार्थ धर्म अच्छा मालुम नहीं होता है । भावार्थ-मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयसे जो जीव देवगुरुशास्त्रके यथार्थ खरूपका
For Private And Personal