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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । असंख्यातमे भागप्रमाण है । उत्कृष्ट अवगाहना खयम्भूरमण समुद्रके मध्यमें होनेवाले महामत्स्यकी होती है । इसका प्रमाण हजार योजन लम्बा, पांचसो योजन चौड़ा, ढाईसौ योजन मोटा है । जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट पर्यन्त एक २ प्रदेशकी वृद्धिके क्रमसे मध्यम अवगाहनाके अनेक भेद होते हैं । अवगाहनाके सम्पूर्ण विकल्प असंख्यात होते हैं। · इन्द्रियकी अपेक्षा उत्कृष्ट अवगाहनाका प्रमाण बताते हैं ।
साहियसहस्समेकं वारं कोसूणमेकमेकं च । जोयणसहस्सदीहं पम्मे वियले महामच्छे ॥ ९५ ॥
साधिकसहस्रमेकं द्वादश क्रोशोनमेकमेकं च ।
योजनसहस्रदीर्घ पढ़े विकले महामत्स्ये ॥ ९५ ॥ अर्थ-पद्म (कमल), द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय,महामत्स्य इनके शरीरकी अवगाहना क्रमसे कुछ अधिक एक हजार योजन, बारह योजन, तीनकोश, एक योजन, हजार योजन लम्बी समझनी चाहिये । भावार्थ-एकेन्द्रियोंमें सबसे उत्कृष्ट कमलकी कुछ अधिक एक हजार योजन, द्वीन्द्रियोंमें शंखकी बारहयोजन, त्रीन्द्रियों में श्रेष्मी ( चीटी) की तीन कोश, चतुरिन्द्रियों में भ्रमरकी एक योजन, पंचेन्द्रियोंमें महामत्स्यकी एक हजार योजन लम्बी शरीरकी अवगाहनाका प्रमाण है । यहांपर महामत्स्यकी एक हजार योजनकी अवगाहनासे जो पद्मकी कुछ अधिक अवगाहना वतलाई है, और पूर्वमें सर्वोत्कृष्ट अवगाहना महामत्स्यकी ही वतलाई है, इससे पूर्वापर विरोध नहीं समझना चाहिथे; क्योंकि यहांपर केवल लम्बाईका वर्णन है, और पूर्वमें जो सर्वोत्कृष्ट अवगाहना बताई थी वह घनक्षेत्रफलकी अपेक्षासे थी, इसलिये पद्मकी अपेक्षा मत्स्यके शरीरकी अवगाहना ही उत्कृष्ट समझनी चाहिये; क्योंकि पद्मकी अपेक्षा मत्स्यके शरीरकी अवगाहनाका क्षेत्रफल अधिक है।
पर्याप्तक द्वीन्द्रियादिकोंकी जघन्य अवगाहनाका प्रमाण क्या है ? और उसके धारक जीव कोन २ हैं यह वताते हैं।
बितिचपपुण्णजहण्णं अणुंधरीकुंथुकाणमच्छीसु।
सिच्छयमच्छे विंदंगुलसंखं संखगुणिदकमा ॥ ९६ ॥ - द्वित्रिचपपूर्णजघन्यमनुंधरीकुंथुकाणमक्षिकासु। - सिक्थकमत्स्ये वृन्दाङ्गुलसंख्यं संख्यगुणितक्रमाः ॥ ९६ ॥
अर्थ-द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय जीवोंमें अनुंधरी कुंथु काणमक्षिका सिक्थमत्स्यके क्रमसे जघन्य अवगाहना होती है। इसमें प्रथमकी घनाङ्गलके संख्यातमें भागप्रमाण है । और पूर्वकी अपेक्षा उत्तरकी अवगाहना क्रमसे संख्यातगुणी २ अधिक है। भावार्थदीन्द्रियोंमें सबसे जघन्य अवगाहना अनुंधरीके पाई जाती है और उसका
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