Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 217
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः । १९७ अर्थ — विहारवत्स्वस्थानकी तरह समुद्वातमें भी त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण स्पर्श है । तथा मारणान्तिक समुद्वातकी अपेक्षा चौदह भागों में से कुछ कम नव भागप्रमाण स्पर्श है । और उपपाद स्थान में चौदह भागमें से कुछ कम डेढ़ भागप्रमाण स्पर्श है । इस प्रकार यह पीत लेश्याका स्पर्श सामान्य से तीन स्थानोंमें बताया है । डेढ़ २ गाथा में पद्म तथा शुक्ललेयशका स्पर्श बताते हैं । पम्मस्स य सट्टाणसमुग्धाददुगेस होदि पढमपदं अड चोइस भागा वा देसूणा होंति नियमेण ॥ ५४७ ॥ पद्मायाश्च स्वस्थानसमुद्धातद्विकयोः भवति प्रथमपदम् । अष्ट चतुर्दश भागा वा देशोना भवन्ति नियमेन ॥ ५४७ ॥ । अर्थ - पद्मलेश्याका विहारवत्स्वस्थान, वेदना कषाय वैक्रियिक तथा मारणान्तिक समुद्धातमें चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण स्पर्श है । तैजस तथा आहार समुद्वातमें संख्यात घनाङ्गुल प्रमाण स्पर्श है । यहां पर च शब्दका ग्रहण किया है इसलिये स्वस्थानस्वस्थानमें लोकके असंख्यात भागों में से एक भाग प्रमाण स्पर्श है । उववादे पढमपदं पणचोदसभागयं च देसूणं । सुक्कस य तिट्ठाणे पढमो छच्चोदसा हीणा उपपादे प्रथमपदं पञ्चचतुर्दशभागकश्च देशोनः । शुक्लायाच त्रिस्थाने प्रथमः षट्चतुर्दश हीनाः || ५४८ ॥ अर्थ - पद्मलेश्या शतार सहस्रार स्वर्गपर्यन्त सम्भव है । इसलिये उपपादकी अपेक्षासे पद्मलेश्याका स्पर्श त्रसनाली के चौदह भागों में से कुछ कम पांच भागप्रमाण है । शुक्ललेश्यावाले जीवोंका स्वस्थानस्वस्थानमें तेजोलेश्याकी तरह लोकके असंख्यातमे भागप्रमाण स्पर्श है । और विहारवत्स्वस्थान, तथा वेदना कषाय वैक्रियिक मारणान्तिक समुद्वात और उपपाद, इन तीन स्थानों में चौदह भागों में से कुछ कम छह भाग प्रमाण स्पर्श है । तैजस आहारक समुद्घात में संख्यातघनाङ्गुल स्पर्श है । ५४८ ॥ वरि समुग्धादम्मिय संखातीदा हवंति भागा वा । सो वा खलु लोगो फासो होदिति णिदिट्ठो ॥ ५४९ ॥ नवर समुद्घाते च संख्यातीता भवन्ति भागा वा । सर्वो वा खलु लोकः स्पर्शो भवतीति निर्दिष्टः ॥ ५४९ ॥ For Private And Personal अर्थ —— केवल - समुद्वातमें विशेषता है, वह इस प्रकार है कि दण्ड समुद्वात में स्पश क्षेत्र की तरह संख्यात प्रतराङ्गुल से गुणित जगच्छ्रेणी प्रमाण है । और स्थित वा उपविष्ट कपाट समुद्घातमें संख्यातसूच्यङ्गुलमात्र जगत्प्रतर प्रमाण है । प्रतर समुदात में लोकके 1

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