Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोम्मटसारः । २३७ अर्थ-आनत प्राणतसम्बन्धी मिश्र के भागहारसे, आरण अच्युतसे लेकर नवम मैवे - यक पर्यंत दश स्थानोंमें मिश्रसम्बन्धी भागहारका प्रमाण क्रमसे संख्यातगुणा संख्यातगुणा है । यहां पर संख्यातकी सहनानी आठका अंक है । अंतिम ग्रैवेयकसम्बन्धी मिश्रके भागहारसे आनत प्राणतसे लेकर नवम मैवेयकपर्यंत ग्यारह स्थानोंमें सासादनसम्यग्दृष्टी के भागहारका प्रमाण क्रमसे संख्यातगुणा २ है । यहां पर संख्यातकी सहनानी चारका अंक है । इन पूर्वोक्त पांच स्थानों में संख्यातकी सहनानी क्रमसे पांच, छह, सात, आठ, और चारके अंक हैं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir • सगसगअवहारेहिं पल्ले भजिदे हवंति सगरासी । सगसगगुणपडवणे सगसगरासीसु अवणिदे वामा ॥ ६४० ॥ स्वकस्वकावहारैः पल्ये भक्ते भवन्ति स्वकराशयः । स्वकस्वकगुणप्रतिपन्नेषु स्वकस्वकराशिषु अपनीतेषु वामाः ॥ ६४० ॥ अर्थ — अपने २ भागहारका पल्यमें भाग देनेसे अपनी २ राशिके जीवोंका प्रमाण निकलता है । तथा अपनी २ सामान्य राशिमेंसे असंयत मिश्र सासादन तथा देशव्रतका प्रमाण घटानेसे अवशिष्ट मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण रहता है । भावार्थ — यहां पर मनुष्यों के भागहारका प्रमाण नहीं बतायां है, तथा देशव्रत गुणस्थान मनुष्य और निर्थंच इन दोनों ही होता है, इसलिये तिर्यचोंकी ही सामान्य राशिमेंसे असंयत मिश्र सासादन तथा देशव्रत गुणस्थानवाले जीवोंका प्रमाण घटानेसे मिथ्यादृष्टि तिर्येच जीवोंका प्रमाण होता है; किन्तु देव और नारकियों की सामान्य राशिमें से असंयत मिश्र और सासादन गुणस्थानवाले, जीवोंका ही प्रमाण घटानेसे अवशिष्ट मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण होता है । परन्तु जहां पर मिथ्यादृष्टि आदि जीव सम्भव हों वहां पर ही इनका ( मिथ्यादृष्टि आदि जीवोंका ) प्रमाण निकालना चाहिये, अन्यत्र नहीं; क्योंकि ग्रैवेयकसे ऊपरके सब देव असंयत ही होते हैं । मनुष्यगति में गुणस्थानों की अपेक्षासे जीवोंका प्रमाण बताते हैं । तेरसकोडी देसे वावण्णं सासणे मुणेदवा । मिस्सावि तहुगुणा असंजदा सत्तकोडिसयं ॥ ६४१ ॥ त्रयोदशकोट्यो देशे द्वापश्वाशत् सासने मन्तव्याः । मिश्रा अपि च तद्विगुणा असंयताः सप्तकोटिशतम् ॥ ६४१ ॥ For Private And Personal अर्थ – देस संयम गुणस्थान में तेरह करोड़, सासादन में बावन करोड़, मिश्र में एकसौ चार करोड़, असंयत में सात करोड़ मनुष्य हैं । प्रमत्तादि गुणस्थानवाले जीवोंका प्रमाण पूर्व ही बता चुके हैं। इस प्रकार यह गुणस्थानोंमें मनुष्य जीवका प्रमाण है 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305