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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । ही हैं । ज्ञानके आठ भेद हैं, कुमति कुश्रुत, विभंग, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, केवल । इनमें आदिके तीन मिथ्या और अंतके पांच ज्ञान सम्यक् होते हैं । मिथ्यादृष्टि सासादनमें आदिके तीन ज्ञान होते हैं। मिश्रमें भी आदिके तीन ही ज्ञान होते हैं, परन्तु वे विपरीत या समीचीन नहीं होते; किन्तु मिश्ररूप होते हैं । असंयत देशसंयतमें सम्यग्ज्ञानोंमेंसे आदिके तीन होते हैं । प्रमत्तादिक क्षीणकषायपर्यन्त आदिके चार सम्यग्ज्ञान होते हैं । सयोगी अयोगीमें केवल केवलज्ञान ही होता है। संयमका सामान्यकी अपेक्षा एक सामायिक; किन्तु विशेष अपेक्षा सात भेद हैं । असंयम देशसंयम सामायिक छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि सूक्ष्मसापराय यथाख्यात । इनमें आदिके चार गुणस्थानोंमें असंयम और पांचमें गुणस्थानमें देशसंयम होता है । प्रमत्त अप्रमत्तमें सामायिक छेदोपस्थापना परिहारविशुद्धि ये तीन संयम होते हैं । आठमे नवमेमें सामायिक छेदोपस्थापना दो ही संयम होते हैं । दशमे गुणस्थानमें सूक्ष्मसांपराय होता है । इसके ऊपर सब गुणस्थानों में यथाख्यात संयम ही होता है । दर्शनके चार भेद हैं, चक्षु अचक्षु अवधि केवल । मिश्रपर्यन्त तीन गुणस्थानों में चक्षु अचक्षु दो दर्शन होते हैं । असंयतादि क्षीणकषाय पर्यन्त चक्षु अचक्षु अवधि ये तीन दर्शन होते हैं । सयोगी अयोगी तथा सिद्धोंके केवलदर्शन ही होता है । लेश्याके छह भेद हैं, कृष्ण नील कापोत पीत पद्म शुक्ल । इनमें आदिकी तीन अशुभ और अंतकी तीन शुभ हैं । आदिके चार गुणस्थानोंमें छहों लेश्या होती हैं । देशसंयतसे लेकर अप्रमत्तपर्यन्त तीन शुभ लेश्या होती हैं। इसके ऊपर सयोगी पर्यन्त शुक्ल लेश्या ही होती है। और अयोगी गुणस्थान लेश्यारहित है । भव्यमार्गणाके दो भेद हैं, भव्य अभव्य । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें भव्य अभव्य दोनों होते हैं । सासादनादि क्षीणकषायपर्यन्त भव्य ही होते हैं । सयोगी और अयोगी भव्य अभव्य दोनोंसे रहित हैं। सम्यक्त्वके छह भेद हैं, मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, उपशम, वेदक, क्षायिक । मिथ्यात्वमें मिथ्यात्व, सासादनमें सासादन, मिश्रमें मिश्र सम्यक्त्व होता है । असंयतसे अप्रमत्ततक उपशम वेदक क्षायिक तीनों सम्यक्त्व होते हैं । इसके ऊपर उपशमश्रेणीमें-अपूर्वकरण आदि उपशांतकषायतक उपशम और क्षायिक दो सम्यक्त्व होते हैं । क्षपक श्रेणीमें-अपूर्वकरण आदि समस्त गुणस्थानों में तथा सिद्धोंके क्षायिक सम्यक्त्व ही होता है। संज्ञीमार्गणाके दो भेद हैं-एक संज्ञी दूसरा असंज्ञी । प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानमें संज्ञी असंज्ञी दोनों ही मार्गणा होती हैं। इसके आगे सासादन आदि क्षीणकषायपर्यन्त संज्ञी मार्गणा ही होती है । सयोगी अयोगीके मन नहीं होता अतः कोई भी संज्ञा नहीं होती। आहारमार्गणाके भी दो भेद हैं-एक आहार दूसरा अनाहार । मिथ्यादृष्टि सासादन असंयत सयोगी इनमें आहार अनाहार दोनों ही होते हैं। अयोगकेवली अनाहार ही होते हैं । शेष नव गुणस्थानोंमें आहार ही होता है।
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