Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 289
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६९ गोम्मटसारः। वेदादाहार इति च स्वगुणस्थानानामोघ आलापः। नवरि च षण्ढस्त्रीणां नास्ति हि आहारकानां द्विकम् ॥ ७२३ ॥ अर्थ-वेदमार्गणासे लेकर आहारमार्गणापर्यन्त दशमार्गणाओंमें अपने २ गुणस्थानके समान आलाप होते हैं । विशेषता इतनी है कि जो भावनपुंसक या भावस्त्रीवेदी हैं उनके आहारक-काययोग और आहारक-मिश्रकाययोग नहीं होता । भावार्थ-जिस २ मार्गणामें जो २ गुणस्थान सम्भव हैं और उनमें जो २ आलाप बताये हैं वे ही आलाप उन २ मार्गणाओंमें होते हैं इनको यथासम्भव लगालेना चाहिये । गुणस्थानोंके आलापोंको पहले बताचुके हैं अतः पुनः यहांपर लिखनेकी आवश्यकता नहीं है । गुणजीवापजत्ती पाणा सण्णा गइंदिया काया। जोगा वेदकसाया णाणजमा दंसणा लेस्सा ॥ ७२४ ॥ भवा सम्मत्तावि य सण्णी आहारगा य उवजोगा। जोग्गा परूविदवा ओघादेसेसु समुदायं ॥ ७२५ ॥ गुणजीवाः पर्याप्तयः प्राणाः संज्ञाः गतीन्द्रियाणि कायाः । योगा वेदकषायाः ज्ञानयमा दर्शनानि लेश्याः ॥ ७२४ ॥ भव्याः सम्यक्त्वान्यपि च संज्ञिनः आहारकाश्चोपयोगाः । योग्याः प्ररूपितव्या ओघादेशयोः समुदायम् ॥ ७२५ ॥ अर्थ-चौदह गुणस्थान, चौदह जीवसमास, छह पर्याप्ति, दश प्राण, चार संज्ञा, चार गति, पांच इन्द्रिय, छह काय, पन्द्रह योग, तीन वेद, चार कषाय, आठ ज्ञान, सात संयम, चार दर्शन, छह लेश्या, भव्यत्व अभव्यत्व, छह प्रकारके सम्यक्त्व, संज्ञित्व असंज्ञित्व, आहारक अनाहरक, बारह प्रकारका उपयोग इन सबका यथायोग्य गुणस्थान और मार्गणास्थानोंमें निरूपण करना चाहिये । भावार्थ-इन वीस स्थानोमेंसे कोई एक विवक्षित स्थान शेष स्थानों में कहां २ पर पाया जाता है इस बातका आगमके अविरुद्ध वर्णन करना चाहिये। जैसे चौदह गुणस्थानों से कौन २ सा गुणस्थान जीवसमासके चौदहभेदोंमेंसे किस २ विवक्षित भेदमें पाया जाता है । अथवा जीवसमास या पर्याप्तिका कोई एक विवक्षित भेदरूप स्थान किस २ गुणस्थानमें पायाजाता है इसका वर्णन करना चाहिये । इसी प्रकार दूसरे स्थानोमें भी समझना चाहिये। जीवसमासमें कुछ विशेषता है उसको बताते हैं । ओघे आदेसे वा सण्णीपजंतगा हवे जत्थ । तत्त य उणवीसंता इगिवितिगुणिदा हचे ठाणा ॥ ७२६ ॥ For Private And Personal

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