Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । गुणस्थान होते हैं। इनमेंसे मिथ्यात्व सासादन असंयतमें तीन २ आलाप होते हैं । और मिश्र देशसंयतमें एक पर्याप्त ही आलाप होता है। दूसरे संज्ञी जीवोंमें सामान्य गुणस्थानोमें जो आलाप कहे हैं उसी तरह समझना चाहिये । संज्ञी जीवोंमें नारकी और देवोंके चार तथा मनुष्योंके चौदहों गुणस्थान होते हैं । क्रमप्राप्त कायमार्गणाके आलापोंको दो गथाओंमें गिनाते हैं। भूआउतेउवाऊणिचचदुग्गदिणिगोदगे तिण्णि । ताणं थूलेदरसु वि पत्तेगे तहुभेदेवि ॥ ७२० ॥ तसजीवाणं ओघे मिच्छादिगुणे वि ओघ आलाओ। लद्धिअपुण्णे एकोऽपजत्तो होदि आलाओ ॥ ७२१ ॥ भ्वप्तेजोवायुनित्यचतुर्गतिनिगोदके त्रयः । तेषां स्थूलेतरयोरपि प्रत्येके तहिभेदेपि ॥ ७२० ॥ त्रसजीवानामोघे मिथ्यात्वादिगुणेऽपि ओघ आलापः । लब्ध्यपूर्णे एक अपर्याप्तो भवत्यालापः ॥ ७२१ ॥ अर्थ-पृथिवी जल अग्मि वायु नित्यनिगोद चतुर्गतिनिगोद इनके स्थूल और सूक्ष्म भेदोमें तथा प्रत्येकके सप्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित दो भेदोमें तीन २ आलाप होते हैं । त्रसजीवोमें चौदह गुणस्थान होते हैं। इनके आलापोमें कुछ विशेषता नहीं है । गुणस्थानसामान्यके जिस तरह आलाप बताये ह उसी तरह यहां भी समझना चाहिये । पृथ्वीसे लेकर सपर्यंत जितने भेद हैं उनमें जो लब्ध्यपर्याप्त हैं उनके एक लब्ध्यपर्याप्त ही आलाप होता है । योगमार्गणामें आलापोंको बताते हैं । एकारसजोगाणं पुण्णगदाणं सपुण्णआलाओ। मिस्सचउक्कस्स पुणो सगएकअपुण्णआलाओ ॥ ७२२ ॥ एकादशयोगानां पूर्णगतानां स्वपूर्णालापः । मिश्रचतुष्कस्य पुनः स्वकैकापूर्णालापः ॥ ७२२ ।। अर्थ-चार मनोयोग चार वचनयोग सात काययोग इन पन्द्रह योगोंमेंसे औदारिक मिश्र वैक्रियिकमिश्र आहारकमिश्र कार्माण इन चार योगोंको छोड़कर शेष ग्यारह योगोमें अपना २ एक पर्याप्त आलाप होता है । और शेष उक्त चार योगोमें अपना २ एक अपर्याप्त आलाप ही होता है। अवशिष्ट मार्गणाओंके आलापोंको संक्षेपमें कहते हैं । वेदादाहारोत्ति य सगुणहाणाणमोघ आलाओ। णवरि य संढित्थीणं णत्थि हु आहारगाण दुगं ॥ ७२३ ॥ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305