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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । सम्यक्त्वमार्गणामें तीन गाथाओंद्वारा जीवसंख्या बताते हैं।
वासपुधत्ते खइया संखेजा जइ हवंति सोहम्मे । तो संखपल्लठिदिये केवदिया एवमणुपादे ॥ ६५६ ॥
वर्षपृथक्त्वे क्षायिकाः संख्येया यदि भवन्ति सौधर्मे । __तर्हि संख्यपल्यस्थितिके कति एवमनुपाते ॥ ६५६ ॥ अर्थ-सायिकसम्यग्दृष्टि जीव सौधर्म ईशान स्वर्गमें पृथक्त्व वर्षमें संख्यात उत्पन्न होते हैं तो संख्यात पल्यकी स्थितिमें कितने जीव उत्पन्न होंगे ? इसका त्रैराशिक करनेसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण निकलता है; क्योंकि क्षायिकसम्यग्दृष्टि बहुधा कल्पवासी देव होते हैं और कल्पवासी देव बहुत करके सौधर्म ईशान वर्गमें ही हैं । भावार्थफलराशि संख्यातका और इच्छाराशि संख्यात पल्यका परस्पर गुणा करके प्रमाण राशि पृथक्त्ववर्षका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना ही क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण है। इस प्रकार त्रैराशिक करनेसे लब्धप्रमाण कितना आया यह बताते हैं ।
संखावलिहिदपल्ला खइया तत्तो य वेदमुवसमगा। आवलिअसंखगुणिदा असंखगुणहीणया कमसो ॥ ६५७ ॥ संख्यावलिहितपल्या क्षायिकास्ततश्च वेदमुपशमकाः ।
आवल्यसंख्यगुणिता असंख्यगुणहीनकाः क्रमशः ॥ ६५७ ॥ अर्थ-संख्यात आवलीसे भक्त पत्यप्रमाण क्षायिकसम्यग्दृष्टि हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टि के प्रमाणका आवलीके असंख्यातमे भागसे गुणा करने पर जो प्रमाण हो उतना ही वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण है । तथा क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके प्रमाणसे असंख्यातगुणा हीन उपशम सम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रमाण हैं। . सासादन मिश्र और मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण बताते हैं ।
पल्लासंखेजदिमा सासणमिच्छा य संखगुणिदा हु। मिस्सा तेहि विहीणो संसारी वामपरिमाणं ॥ ६५८ ॥
पल्यासंख्याताः सासनमिथ्याश्च संख्यगुणिता हि ।
मिश्रास्तैर्विहीनः संसारी वामपरिमाणम् ॥ ६५८।। अथे-पल्यके असंख्यातमे भागप्रमाण सासादनमिथ्यादृष्टि जीव हैं । और इनसे संख्यातगुणे मिश्र जीव हैं । तथा संसारी जीवराशिमेंसे क्षायिक औपशमिक क्षायोपशमिक सासादन मिश्र इन पांच प्रकारके जीवोंका प्रमाण घटानेसे जो शेष रहे उतना ही मिथ्यादृष्टि जीवोंका प्रमाण है।
॥ इति सम्यक्त्वमार्गणाधिकारः ।।
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