Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 270
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २५० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। ज्ञानोपयोगयुतानां परिमाणं ज्ञानमार्गणावद्भवेत् । दर्शनोपयोगिनां दर्शनमार्गणावदुक्तक्रमः ॥ ६७५ ॥ अर्थ-ज्ञानोपयोगवाले जीवोंका प्रमाण ज्ञानमार्गणावाले जीवोंकी तरह समझना चाहिये । और दर्शनोपयोगवालोंका प्रमाण दर्शनमार्गणावालों की तरह समझना चाहिये । इनमें कुछ विशेषता नहीं है। ॥ इति उपयोगाधिकारः॥ उक्त प्रकारसे वीस प्ररूपणाओंका वर्णन करके अब अन्तर्भावाधिकारका वर्णन करते हैं। गुणजीवा पजत्ती पाणा सण्णा य मग्गणुवजोगो। जोग्गा परूविदवा ओघादेसेसु पत्तेयं ॥ ६७६ ॥ गुणजीवाः पर्याप्तयः प्राणाः संज्ञाश्च मार्गणोपयोगी । योग्याः प्ररूपितव्या ओघादेशयोः प्रत्येकम् ॥ ६७६॥ अर्थ-उक्त वीस प्ररूपणाओंमेसे गुणस्थान और मार्गणास्थानमें यथायोग्य प्रत्येक गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति प्राण संज्ञा मार्गणा उपयोगका निरूपण करना चाहिये । भावार्थ-इस अधिकारमें यह बताते हैं कि किस २ मार्गणामें या गुणस्थानमें शेष किस २ प्ररूपणाका अन्तर्भाव होता है । परन्तु इस अन्तर्भावका निरूपण यथायोग्य होना चाहिये। किस २ मार्गणामें कौन २ गुणस्थान होते हैं ? उत्तरः चउपण चोहस चउरो णिरयादिसु चोदसं तु पंचक्खे । तसकाये सेसिंदियकाये मिच्छं गुणहाणं ॥ ६७७॥ चत्वारि पञ्च चतुर्दश चत्वारि निरयादिषु चतुर्दश तु पञ्चाक्षे । त्रसकाये शेषेन्द्रियकाये मिथ्यात्वं गुणस्थानम् ॥ ६७७ ॥ अर्थ-गतिमार्गणाकी अपेक्षासे क्रमसे नरकगगितमें आदिके चार गुणस्थान होते हैं, और तिर्यग्गतिमें पांच, मनुष्यगतिमें चौदह, तथा देवगतिमें नरकगतिके समान चार गुणस्थान होते हैं । इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय जीवोंके चौदह गुणस्थान और शेष एकेन्द्रियसे लेकर चतुरिन्द्रियपर्यन्त जीवोंके केवल मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है। कायमागंणाकी अपेक्षा त्रसकायके चौदह और शेष स्थावर कायके एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है । भावार्थ-यहां पर यह बताया है कि अमुक २ गति इन्द्रिय या कायवाले जीवोंके अमुक २ गुणस्थान होता है । इसी तरह जीवसमासांदिकोंको भी यथायोग्य समझना चाहिये । जैसे कि नरक और देवगतिमें पर्याप्ति और निर्वृत्यपर्याप्ति ये दो जीवसमास होते हैं । तिर्यग्गतिमें चौदह तथा मनुष्यगतिमें संज्ञीसम्बन्धी पर्याप्त अपर्याप्त ये दो जीवसमास For Private And Personal

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