Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 274
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ — आदिके तीन सम्यग्ज्ञान ( मति श्रुत अवधि ) अत्रतसम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषायपर्यन्त होते हैं । मन:पर्ययज्ञान छट्ठे गुणस्थान से लेकर बारहमे गुणस्थान तक होता है । और केवलज्ञान तेरहमे चौदहमे गुणस्थान में तथा सिद्धों के होता है । भावार्थआदि के तीन सम्यग्ज्ञानोमें गुणस्थान नव और जीवसमास संज्ञी पर्याप्त अपर्याप्त ये दो होते हैं । मनःपर्यय ज्ञानमें गुणस्थान सात और जीवसमास एक संज्ञीपर्याप्त ही है । यहां पर यह शंका नहीं हो सकती कि आहारक मिश्रयोगकी अपेक्षा अपर्याप्तता भी सम्भव है इस - लिये यहां दो जीवसमास कहने चाहिये ? क्योंकि मनःपर्यय ज्ञानवालेके नियमसे आहारकऋद्धि नहीं होती । केवलज्ञानकी अपेक्षा गुणस्थान दो ( सयोगी, अयोगी ) और जीवसमास भी संज्ञी पर्याप्त अपर्याप्त ये दो होते हैं । सयोगकेवलियों के समुद्धात समय में अपर्यातता भी होती है यह पहले कहचुके हैं । गुणस्थानोंसे रहित सिद्धोंके भी केवलज्ञान है । 1 Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अयदोत्ति हु अविरमणं देसे देसो प्रमत्त इदरे य । परिहारो सामाइयछेदो छट्ठादि धूलोति ॥ ६८८ ॥ सुमो सहमकसाये संते खीणे जिणे जहक्खादं । संजममग्गणभेदा सिद्धे णत्थिति णिहिं ॥ ६८९ ॥ अयत इति अविरमणं देशे देशः प्रमत्तेतरस्मिन् च । परिहारः सामायिकश्छेदः षष्ठादिः स्थूल इति ॥ ६८८ ॥ सूक्ष्मः सूक्ष्मकषाये शान्ते क्षीणे जिने यथाख्यातम् । संयममार्गणभेदाः सिद्धे न सन्तीति निर्दिष्टम् ॥ ६८९ ॥ अर्थ —संयममार्गणामें असंयमको भी गिनाया है, इसलिये यह ( असंयम ) मिथ्याहष्टिसे लेकर अव्रतसम्यग्दृष्टितक होता है । अतः यहां पर गुणस्थान चार और जीवसमास चौदह होते हैं। देशसंयम पांचमे गुणस्थान में ही होता है । अतः यहां पर गुणस्थान एक और जीवसमास भी एक संज्ञी पर्याप्त ही होता है । परिहारविशुद्धि संयम छट्ठे सातमे गुणस्था - नमें ही होता है, यहांपर भी जीवसमास एक संज्ञीपर्याप्त ही होता है; क्योंकि परिहारविशुद्धिवाला आहारक नहीं होता । सामायिक और छेदोपस्थापना संयम छठ्ठेसे लेकर अनिवृतिकरण गुणस्थानतक होता है । इसलिये यहांपर गुणस्थान चार और जीवसमास दो होते हैं । सूक्ष्मसांपराय संयम दशमे गुणस्थान में ही होता है । अतः यहांपर गुणस्थान और जीवसमास एक २ ही है । यथाख्यात संयम उपशांतकषाय क्षीणकषाय सयोगकेवली और अयोगकेवलियोंके होता है । यहां पर गुणस्थान चार और जीवसमास संज्ञी पर्याप्त तथा केवलसमुद्धातकी अपेक्षा अपर्याप्त ये दो होते हैं । सिद्ध गुणस्थान और मार्गणाओंसे रहित हैं अतः उनके कोई भी संयम नहीं होता । For Private And Personal

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