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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । किन्तु स्निग्ध रूक्ष और रूपी अरूपी पुद्गलोंका परस्परमें बन्ध होता है। भावार्थयद्यपि यहां पर यह कहा है कि स्निग्धस्निग्ध और रूक्षरूक्षका बन्ध नहीं होता तथापि यह कथन सामान्य है; क्योंकि आगे चलकर विशेष कथनके द्वारा स्वयं ग्रन्थकार इस बातको स्पष्ट कर देंगे कि स्निग्धस्निग्ध और रूक्षरूक्षका भी बन्ध होता है । और इस ही लिये यहांपर रूपी अरूपीका बन्ध होता है ऐसा कहा है। रूपी अरूपी संज्ञा किसकी है यह बताते हैं।
णिद्धिदरोलीमज्झे विसरिसजादिस्स समगुणं एकं । रूवित्ति होदि सपणा सेसाणं ता अरूवित्ति ॥६१२॥ स्निग्धेतरावलीमध्ये विसदृशजातेः समगुण एकः ।
रूपीति भवति संज्ञा शेषाणां ते अरूपिण इति ॥ ६१२ ॥ अर्थ-स्निग्ध और रूक्षकी श्रेणिमें जो विसदृश जातिका एक समगुण है उसकी रूपी संज्ञा है । और समगुणको छोड़कर अवशिष्ट सबकी अरूपी संज्ञा है । भावार्थ-जब कि विसदृश जातिके एक समगुणकी ही रूपी संज्ञा है और शेषकी अरूपी, और रूपी अरूपीका बन्ध होता है, तब यह सिद्ध है कि स्निग्धस्निग्ध और रूक्षरूक्षका भी बन्ध होता है। स्निग्धकी अपेक्षा रूक्ष और रूक्षकी अपेक्षा स्रिग्ध विसदृश होता है। रूपी अरूपीका उदाहरण दिखाते हैं।
दोगुणणिद्धाणुस्स य दोगुणलुक्खाणुगं हवे रूवी। इगितिगुणादि अरूवी रुक्खस्स वि तंव इदि जाणे ॥ ६१३॥ द्विगुणस्निग्धाणोश्च द्विगुणरूक्षाणुको भवेत् रूपी।
एकत्रिगुणादिः अरूपी रूक्षस्यापि तद्व इति जानीहि ॥ ६१३ ॥ अर्थ-स्निग्धके दो गुणोंसे युक्त परमाणुकी अपेक्षा रूक्षका दोगुण युक्त परमाणु रूपी है शेष एक तीन चार आदि गुणोंके धारक परमाणु अरूपी हैं । इस ही तरह रूक्षका भी समझना चाहिये । भावार्थ-रूक्षके दो गुणोंसे युक्त परमाणुकी अपेक्षा स्निग्धका दो गुणोंसे युक्त परमाणु रूपी है और शेष एक तीन आदि गुणों के धारक परमाणु अरूपी हैं।
णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण । णिद्धस्स लुक्खण हवेज बंधो जहण्णवजे विसमे समे वा ॥६१४॥
स्निग्धस्य स्निग्धेन ब्यधिकेन रूक्षस्य रूक्षेण ब्यधिकेन ।
स्निग्धस्य रूक्षेण भवेद्वन्धो जघन्यवये विषमे समे वा ॥ ६१४ ॥ अर्थ-एक स्निग्ध परमाणुका दूसरी दो गुण अधिक स्निग्ध परमाणुके साथ बन्ध
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