Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 253
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसारः। २३३ क्षपक तथा उपशमक जीवोंकी युगपत् संभवती विशेष संख्याको तीन गाथाओंमें कहते हैं। होति खवा इगिसमये बोहियबुद्धा य पुरिसवेदा य । उक्कस्सेण?त्तरसयप्पमा सग्गदो य चुदा ॥ ६२९ ॥ पत्तेयबुद्धतित्थयरत्थिणउंसयमणोहिणाणजुदा । दसछक्कवीसदसवीसठ्ठावीसं जहाकमसो ॥ ६३०॥ जेहावरबहुमज्झिमओगाहणगा दु चारि अट्टेव । जुगवं हवंति खवगा उवसमगा अद्धमेदेसि ॥ ६३१ ॥ भवन्ति क्षपका एकसमये बोधितबुद्धाश्च पुरुषवेदाश्च । उत्कृष्टेनाष्टोत्तरशतप्रमाः स्वर्गतश्च च्युताः ॥ ६२९ ॥ प्रत्येकबुद्धतीर्थकरस्त्रीपुंनपुंसकमनोवधिज्ञानयुताः । दशषट्कविंशतिदशविंशत्यष्टाविंशो यथाक्रमशः ॥ ६३० ॥ ज्येष्ठावरबहुमध्यमावगाहा द्वौ चत्वारोऽष्टैव । युगपत् भवन्ति क्षपका उपशमका अर्धमेतेषाम् ॥ ६३१ ।। अर्थ-युगपत् एक समयमें क्षपकश्रेणिवाले जीव अधिकसे अधिक होते हैं तो कितने होते हैं ? उसका हिसाव इस प्रकार है कि बोधितबुद्ध एकसौ आठ, पुरुषवेदी एकसौ आठ, खर्गसे च्युत होकर मनुष्य होकर क्षपकश्रेणि माड़नेवाले एकसौ आठ, प्रत्येकबुद्धि ऋद्धिके धारक दश, तीर्थकर ' छह, स्त्रीवेदी वीस, नपुंसकवेदी दश, मनःपर्ययज्ञानी वीस, अवधिज्ञानी अट्ठाईस, मुक्त होनेके योग्य शरीरकी उत्कृष्ट अवगाहनाके धारक दो, जघन्य अवगाहनाके धारक चार, समस्त अवगाहनाओंके मध्यवर्ती अवगाहनाके धारक आठ । ये सब मिलकर चारसौ बत्तीस होते हैं । उपशमश्रेणिवाले इसके आधे ( २१६ ) होते हैं । भावार्थ--पहले तो गुणस्थानमें एकत्रित होनेवाले जीवोंकी संख्या बताई थी, और यहां पर श्रेणिमें युगपत् सम्भवती जीवोंकी उत्कृष्ट संख्या बताई है । सर्व संयमी जीवोंकी संख्याको बताते हैं । सत्तादी अटुंता छण्णवमज्झा य संजदा सवे । अंजलिमौलियहत्थो तियरणसुद्धे णमंसामि ॥ ६३२ ॥ सप्तादयोऽष्टान्ताः षण्णवमध्याश्च संयताः सर्वे । अञ्जलिमौलिकहस्तस्त्रिकरणशुद्ध्या नमस्यामि ॥ ६३२ ॥ १ तान् इत्यध्याहारः । गो.३० For Private And Personal

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