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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । परमाणुवर्गणायां नावरोत्कृष्टं च शेषके अस्ति ।
ग्राह्यमहास्कन्धानां वरमधिकं शेषकं गुणितम् ॥ ५९५ ॥ अर्थ-तेईस प्रकारकी वर्गणाओं में से अणुवर्गणामें जघन्य उत्कृष्ट भेद नहीं है । शेष वाईस जातिकी वर्गणाओंमें जघन्य उत्कृष्ट भेद हैं । तथा इन वाईस जातिकी वर्गणाओंमें भी आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, कार्मणवर्गणा, ये पांच ग्राह्य वर्गणा और एक महास्कन्ध वर्गणा इन छह वर्गणाओंके जघन्य उत्कृष्ट भेद प्रतिभागकी अपेक्षासे हैं । किन्तु शेष सोलह जातिकी वर्गणाओंके जघन्य उत्कृष्ट भेद गुणाकारकी अपेक्षासे हैं । ___ पांच ग्राह्यवर्गणाओंका तथा अन्तिम महास्कन्धका उत्कृष्ट भेद निकालनेके लिये प्रतिभागका प्रमाण बताते हैं।
सिद्धाणंतिमभागो पडिभागो गेज्झगाण जेटं । पल्लासंखेजदियं अंतिमखंधस्स जेमुढें ॥ ५९६ ॥ सिद्धानन्तिमभागः प्रतिभागो ग्राह्याणां ज्येष्टार्थम् ।
पल्यासंख्येयमन्तिमस्कन्धस्य ज्येष्ठार्थम् ॥ ५९६ ॥ अर्थ-पांच ग्राह्यवर्गणाओंका उत्कृष्ट भेद निकालनेकेलिये प्रतिभागका प्रमाण सिद्धराशिके अनन्तमे भाग है । और अन्तिम महास्कन्धका उत्कृष्ट भेद निकालनेकेलिये प्रतिभागका प्रमाण पत्यके असंख्यातमे भाग है । भावार्थ-सिद्धराशिके अनंतमे भागका अपने २ जघन्यमें भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसको अपने २ जघन्यमें मिलानेसे पांच ग्राह्य वर्गणाओं के अपने २ उत्कृष्ट भेदका प्रमाण निकलता है । और अन्तिम महास्कन्धके जघन्य भेदमें पल्यके असंख्यातमे भागका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उसको जघन्यके प्रमाणमें मिलानेसे महास्कन्धके उत्कृष्ट भेदका प्रमाण निकलता है ।
संखेज्जासंखेजे गुणगारो सो दु होदि हु अणंते । चत्तारि अगेजेसु वि सिद्धाणमणंतिमो भागो ॥ ५९७ ॥ संख्यातासंख्यातायां गुणकारः स तु भवति हि अनन्तायाम् ।
चतसृषु अग्राह्यास्वपि सिद्धानामनन्तिमो भागः ॥ ५९७ ॥ अर्थ-संख्याताणुवर्गणा और असंख्याताणुवर्गणामें गुणकारका प्रमाण अपने २ उत्कृष्टमें अपने २ जघन्यका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतना है । इस गुणकारके साथ अपने २ जघन्यका गुणा करनेसे अपना २ उत्कृष्ट भेद निकलता है। और अनन्ताणुवर्गणा तथा चार अग्राह्यवर्गणाओंके गुणकारका प्रमाण सिद्धराशिके अनंतमे भागमात्र है । इस गुणकारके साथ अपने जघन्यका गुणा करनेसे अपना २ उत्कृष्ट भेद निकलता है ।
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