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गोम्मटसारः। दशविधसत्ये वचने यो योगः स तु सत्यवचोयोगः ।
तद्विपरीतो मृषा जानीहि उभयं सत्यमृषेति ॥ २१९ ॥ अर्थ-दश प्रकारके सत्य अर्थके वाचक वचनको सत्यवचन और उससे होनेवाले योगको सत्यवचनयोग कहते हैं । तथा इससे जो विपरीत है उसको मृषा और जो कुछ सत्य और कुछ मृषाका वाचक है उसको उभयवचनयोग कहते हैं ।
जो णेव सचमोसो सो जाण असचमोसवचिजोगो। अमणाणं जा भासा सण्णीणामंतणी आदी ॥ २२० ॥ ___ यो नैव सत्यमृषा स जानीहि असत्यमृषावचोयोगः ।
अमनसां या भाषा संज्ञिनामामन्त्रण्यादिः ॥ २२० ।।। अर्थ-जो न सत्यरूप हो और न मृषारूप ही हो उसको अनुभय वचनयोग कहते हैं । असंज्ञियोंकी समस्त भाषा और संज्ञियोंकी आमन्त्रणी आदिक भाषा अनुभय भाषा कही जाती हैं। दशप्रकारका सत्य बताते हैं।
जणवदसम्मदिठवणाणामे रूबे पडुचववहारे । संभावणे य भावे उवमाए दसविहं सचं ॥ २२१ ॥
जनपदसम्मतिस्थापनानाम्नि रूपे प्रतीत्यव्यवहारयोः ।
संभावनायां च भावे उपमायां दशविधं सत्यम् ॥ २२१ ॥ अर्थ-जनपदसत्य, सम्मतिसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, व्यवहारसत्य, संभावनासत्य, भार्वसत्य, उपमासत्य, इस प्रकार सत्यके दश भेद हैं। दश प्रकारके सत्यका दो गाथाओंमें दृष्टान्त बताते हैं ।
भत्तं देवी चंदप्पहपडिमा तह य होदि जिणदत्तो। सेदो दिग्धो रज्झदि कूरोत्ति य ज हवे वयणं ॥ २२२ ॥ सको जंबूदीपं पल्लदृदि पाववजवयणं च । पल्लोवमं कमसो जणवदसच्चादिदिठंता ॥ २२३ ॥
भक्तं देवी चन्द्रप्रभप्रतिमा तथा च भवति जिनदत्तः।। श्वेतो दीर्घो रध्यते क्रूरमिति च यद्भवेद्वचनम् ॥ २२२ ॥ शको जम्बूद्वीपं परिवर्तयति पापवर्जवचनं च।
पल्पोपमं च क्रमशो जनपदसत्यादिदृष्टान्ताः ॥ २२३ ॥ अर्थ-उक्त दश प्रकारके सत्यवचनके ये दश दृष्टान्त हैं । भावार्थ-तत्तद्देशवासी मनुष्योंके व्यवहार में जो शब्द रूढ होरहा है उसको जनपद सत्य कहते हैं । जैसे भक्त
गो. १२
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