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गोम्मटसारः।
अर्थ – यद्यपि वहारका प्रमाण सिद्धराशिके अनन्तमे भाग है, तथापि अवधि-ज्ञानविषयक समयबद्धका प्रमाण निकालनेके निमित्तभूत कार्मण वर्गणाके गुणकार से अनन्तमे भाग समझना चाहिये । द्रव्यकी अपेक्षासे देशावधि ज्ञानके जितने भेद हैं उनमें दो कम करनेसे जो प्रमाण शेष रहे उसका ध्रुवहारप्रमाण परस्पर गुणा करनेसे कार्मण वर्गणाके गुणकारका प्रमाण निकलता है ।
देशावधि ज्ञानके द्रव्यकी अपेक्षा कितने भेद हैं यह बताते हैं । अंगुल असंखगुणिदा खेत्तवियप्पा य दव भेदा हु | खेत्तवियप्पा अवरुक्कस्सविसेसं हवे एत्थ ॥ ३८९ ॥ अङ्गुला संख्यगुणिताः क्षेत्रविकल्पाश्च द्रव्यभेदा हि । क्षेत्र विकल्पा अवरोत्कृष्टविशेषो भवेदन ॥ ३८९ ॥
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अर्थ - देशावधि ज्ञान के क्षेत्रकी अपेक्षा जितने भेद हैं उनको सूच्यंगुलके असंख्या मे भागसे गुणा करनेपर, द्रव्यकी अपेक्षासे देशावधिके भेदों का प्रमाण निकलता है । क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट प्रमाणमेंसे सर्व—- जघन्य प्रमाणको घटाने और एक मिलानेसे जो प्रमाण शेष रहे उतने ही क्षेत्रकी अपेक्षासे देशावधिके विकल्प होते हैं ।
क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाण कितना है यह बताते हैं ।
अंगुल असंखभागं अवरं उक्कस्यं हवे लोगो । इदि वग्गणगुणगारो असंखधुवहारसंवग्गो ॥ ३९० ॥ अङ्गुलासंख्यभागमवरमुत्कृष्टकं भवेल्लोकः ।
इति वर्गणागुणकारोऽसंख्यधुवहारसंवर्गः ॥ ३९० ॥
अर्थ – देशावधिका पूर्वोक्त लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनाप्रमाण, अर्थात् घनाङ्गुलके असंख्यातमे भागस्वरूप जो प्रमाण बताया है वही जघन्य क्षेत्रका प्रमाण है । सम्पूर्ण लोकप्रमाण उत्कृष्ट क्षेत्र है । इसलिये असंख्यात ध्रुवहारोंका परस्पर गुणा करने से कार्मण वर्गणाका गुणकार निष्पन्न होता है ।
वर्गणाका प्रमाण बताते हैं ।
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वग्गण सिपमाणं सिद्धाणंतिमपमाणमेत्तं पि । दुगसहियपरमभेदपमाणवहाराण संवग्गो ॥ ३९१ ॥
वर्गणाराशिप्रमाणं सिद्धानन्तिमप्रमाणमात्रमपि । द्विकसहितपरमभेदप्रमाणावहाराणां संवर्गः ॥ ३९१ ॥
अर्थ – कार्मण वर्गणाका प्रमाण यद्यपि सिद्धराशिके अनन्तमे भाग है; तथापि परमाव
१ ध्रुवहारका जितना प्रमाण है उतनी वार ।