________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । ध्रुवहारकार्मणवर्गणागुणकारं कार्मणवर्गणां गुणिते ।
समयप्रबद्धप्रमाणं ज्ञातव्यमवधिविषये ॥ ३८४ ।। अर्थ-ध्रुवहाररूप कार्मण वर्गणाके गुणाकारका और कार्मण वर्गणाका परस्पर गुणा करनेसे अवधि ज्ञानके विषयमें समयप्रबद्धका प्रमाण निकलता है। ध्रुवहारका प्रमाण विशेषतासे बताते हैं।
मणदववग्गणाण वियप्पाणंतिमसमं खु धुवहारो। अवरुक्कस्सविसेसा रूवहिया तबियप्पा हु ॥ ३८५ ॥ मनोद्रव्यवर्गणानां विकल्पानन्तिमसमं खलु ध्रुवहारः।
अवरोत्कृष्टविशेषाः रूपाधिकास्तद्विकल्पा हि ॥ ३८५ ॥ अर्थ-मनोद्रव्य-वर्गणाके उत्कृष्ट प्रमाणमेंसे जघन्य प्रमाणके घटानेसे जो शेष रहे उसमें एक मिलानेसे मनोद्रव्य-वर्गणाके विकल्पोंका प्रमाण होता है। इन विकल्पोंका जितना प्रमाण हो उसके अनन्त भागोंमें से एक भागकी वरावर अवधि ज्ञानके विषयभूत द्रव्यके ध्रुवहारका प्रमाण होता है। मनोद्रव्य-वर्गणाके जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाणको बताते हैं।
अवरं होदि अणंतं अणंतभागेण अहियमुक्कस्सं । इदि मणभेदाणंतिमभागो दवम्मि धुवहारो ॥ ३८६ ॥
अवरं भवति अनन्तमनन्तभागेनाधिकमुत्कृष्टम् ।
इति मनोभेदानन्तिमभागो द्रव्ये ध्रुवहारः ॥ ३८६ ॥ अर्थ--मनोद्रव्यवर्गणाका जघन्य प्रमाण अनन्त, इसमें इसीके ( जघन्यके ) अनन्त भागोंमेंसे एक भाग मिलानेसे मनोवर्गणाका उत्कृष्ट प्रमाण होता है । इस प्रकार जितने मनोवर्गणाके भेद हुए उसके अनन्त भागोंमेंसे एकभाग-प्रमाण अवधि ज्ञानके विषयभूत द्रव्यके विषयमें ध्रुवहारका प्रमाण होता है । प्रकारान्तरसे फिर भी ध्रुवहारका प्रमाण बताते हैं ।
धुवहारस्स पमाणं सिद्धाणंतिमपमाणमेत्तं पि। समयपवद्धणिमित्तं कम्मणवग्गणगुणादो दु ॥ ३८७ ॥ होदि अणंतिमभागो तग्गुणगारो वि देसओहिस्स । दोऊणदवभेदपमाणद्धवहारसंवग्गो ॥ ३८८ ॥ ध्रुवहारस्य प्रमाणं सिद्धानन्तिमप्रमाणमात्रमपि ।। समयप्रबद्धनिमित्तं कार्मणवर्गणागुणतस्तु ॥ ३८७ ॥ भवत्यनन्तिमभागस्तद्गुणकारो पि देशावधेः। ब्यूनद्रव्यभेदप्रमाणध्रुवहारसंवर्गः ॥ ३८८ ॥
For Private And Personal