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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
चतुर्गतिमतिश्रुतबोधाः पल्यासंख्येया हि मन:पर्ययाः ।
संख्येयाः केवलिनः सिद्धात् भवन्ति अतिरिक्ताः ॥ ४६० ॥ गतिसम्बन्धी मतिज्ञानियोंका अथवा श्रुतज्ञानियोंका प्रमाण पल्यके असं
ख्यातमे भागप्रमाण है । और मनःपर्ययवाले कुल संख्यात हैं । तथा केवलियोंका प्रमाण सिद्धराशिसे कुछ अधिक है । भावार्थ - सिद्धराशिमें जिनकी ( अर्हन्तों की ) संख्या मिलानेसे केवलियोंका प्रमाण होता है।
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ओडिरहदा तिरिक्खा मदिणाणिअसंखभागगा मणुगा । संखेजा हु तदूणा मदिणाणी ओहिपरिमाणं ॥ ४६१ ॥ अवधिरहिताः तिर्यञ्चः मतिज्ञान्यसंख्यभागका मनुजाः । संख्येया हि तदूना मतिज्ञानिनः परिमाणम् ॥ ४६१ ॥
और
अर्थ — अवधिज्ञानरहित तिर्यञ्च - मतिज्ञानियोंकी संख्याका असंख्यातमा भाग, अवधिज्ञानरहित मनुष्यों की संख्यात राशि इन दो राशियोंको मतिज्ञानियोंके प्रमाण से घटाने पर जो शेष रहे उतना ही अवधि ज्ञानका प्रमाण है । पल्लासंखघणंगुलहद सेढितिरिक्खगदिविभङ्गजुदा । रसहिदा किंचूणा चदुगदिवेभङ्गपरिमाणम् ॥ ४६२ ॥ पल्यासंख्यघनाङ्गुलहतश्रेणितिर्यग्गतिविभंगयुताः ।
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नरसहिताःकिञ्चिदूनाः चतुर्गतिवैभङ्गपरिमाणम् ॥ ४६२ ॥
अर्थ —पल्यके असंख्यातमे भागसे गुणित घनाङ्गुलका और जगच्छ्रेणीका गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो उतने तिर्यञ्च, और संख्यात मनुष्य, घनाङ्गुलके द्वितीय वर्गमूलसे गुणित जगच्छ्रेणी प्रमाण नारकी, तथा सम्यग्दृष्टियों के प्रमाणसे रहित सामान्य देवराशि, इन चारों राशियों के जोड़नेसे जो प्रमाण हो उतने विभङ्गज्ञानी हैं। सण्णाणरासिपंचयपरिहीणो सङ्घजीवरासी हु ।
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मदिसुदअण्णाणीणं पत्तेयं होदि परिमाणं ॥ ४६३ ॥ सद्ज्ञानराशिपञ्चकपरिहीनः सर्वजीवराशिर्हि ।
मतिश्रुताज्ञानिनां प्रत्येकं भवति परिमाणम् ॥ ४६३ ॥
अर्थ - पांच सम्यग्ज्ञानी जीवोंके प्रमाणको ( केवलियों के प्रमाणसे कुछ अधिक ) सम्पूर्ण जीवराशि के प्रमाणमेंसे घटानेपर जो शेष रहे उतने कुमतिज्ञानी तथा उतने ही कुश्रुतज्ञानी जीव हैं ।
इति ज्ञानमार्गणाधिकारः ॥
१ परन्तु इसमेंसे सम्यग्दृष्टियों का प्रमाण घटाना ।
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