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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । लेश्यावाले संज्ञी तिर्यच जीवोंके प्रमाणसे संख्यातगुणे कम पद्मलेश्यावाले जीव हैं । और सूच्यङ्गुलके असंख्यातमे भाग शुक्ललेश्यावाले जीव हैं । भावार्थ-पैंसठ हजार पांचसौ छत्तीस प्रतरामुलका भाग जगत्प्रतरको देनेसे जो प्रमाण शेष रहे उतने ज्योतिषी देव हैं । और पांच वार संख्यातसे गुणित पण्णट्ठी प्रमाण प्रतरामुलका भाग जगत्प्रतरको देनेसे जो प्रमाण रहे उतने तिर्यंच, और संख्यात मनुष्य, इन दोनों राशियोंके जोड़नेसे जो प्रमाण हो उतने तेजोलेश्यावाले जीव हैं । तथा तेजोलेश्यावालोंसे संख्यातगुणे कम पद्मलेश्यावाले और सूच्यङ्गुलके असंख्यातमे भाग शुक्ललेश्यावाले जीव हैं । उक्त अर्थको ही स्पष्ट करते हैं।
वेसदछप्पण्णंगुलकदिहिदपदरं तु जोइसियमाणं । तस्स य संखेजदिमं तिरिक्खसण्णीण परिमाणं ॥ ५४०॥
द्विशतषट्पञ्चाशदङ्गुलकृतिहितप्रतरं तु ज्योतिष्कमानम् ।
__ तस्य च संख्येयतमं तिर्यक्संज्ञिनां परिमाणम् ॥ ५४० ॥ अर्थ-दो सौ छप्पन अंगुलके वर्गप्रमाण ( पण्णट्ठीप्रमाण=६५५३६ ) प्रतरामुलका भाग जगत्प्रतरमें देनेसे जो प्रमाण हो उतने ज्योतिषी देव हैं । और इसके संख्यातमे भागप्रमाण संज्ञी तिर्यंच जीव हैं ।
तेउदु असंखकप्पा पल्लासंखेजभागया सुक्का । ओहिअसंखेजदिमा तेउतिया भावदो होति ॥ ५४१॥ तेजोद्वया असंख्यकल्पाः पल्यासंख्येयभागकाः शुक्लाः ।
अवध्यसंख्येयाः तेजस्त्रिका भावतो भवन्ति ॥ ५४१ ॥ अर्थ-असंख्यात कल्पकालके जितने समय हैं उतने ही सामान्यसे तेजोलेश्यावाले और उतने ही पद्मलेश्यावाले जीव हैं । तथापि तेजोलेश्यावालोंसे पद्मलेश्यावाले संख्यातमे भाग हैं । पल्यके असंख्यातमे भागप्रमाण शुक्ललेश्यावाले जीव हैं । इस प्रकार कालकी अपेक्षासे तीन शुभलेश्याओंका प्रमाण समझना चाहिये । तथा अवधिज्ञानके जितने विकल्प हैं उसके असंख्यातमे भाग सामान्यसे प्रत्येक शुभलेश्यावाले जीव हैं । तथापि तेजोलेश्यावालोंसे संख्यातमेभाग पद्मलेश्यावाले और पद्मलेश्यावालोंसे शुक्ललेश्यावाले असंख्यातमेभागमात्र हैं। क्षेत्राधिकारके द्वारा लेश्याओंका वर्णन करते हैं ।
सट्ठाणसमुग्धादे उववादे सबलोयमसुहाणं । लोयस्सासंखेजदिभागं खेत्तं तु तेउतिये ॥ ५४२ ॥
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