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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । इस प्रकार स्वामी अधिकारका वर्णन करके साधन अधिकारका वर्णन करते हैं ।
वण्णोदयसंपादितसरीरवण्णो दु दवदो लेस्सा।
मोहुदयखओवसमोवसमखयजजीवफंदणं भावो ॥ ५३५ ॥ ___ वर्णोदयसंपादितशरीरवर्णस्तु द्रव्यतो लेश्या ।
मोहोदयक्षयोपशमोपशमक्षयजजीवस्पन्दो भावः॥ ५३५ ॥ अर्थ-वर्णनामकर्मके उदयसे जो शरीरका वर्ण ( रंग ) होता है उसको द्रव्यलेश्या कहते हैं । मोहनीय कर्म के उदय या क्षयोपशम या उपशम या क्षयसे जो जीवके प्रदेशोंकी चंचलता होती है उसको भावलेश्या कहते हैं। भावार्थ-द्रव्यलेश्याका साधन वर्णनामकर्मका उदय है । भावलेश्याका साधन असंयतपर्यन्त चार गुणस्थानोंमें मोहनीय कर्मका उदय, और देशविरत आदि तीन गुणस्थानों में मोहनीय कर्मका क्षयोपशम, उपशमश्रेणिमें मोहनीय कर्मका उपशम, तथा क्षपकश्रेणिमें मोहनीय कर्मका क्षय होता है । क्रमप्राप्त संख्या अधिकारका वर्णन करते हैं।
किण्हादिरासिमावलिअसंखभागेण भजिय पविभत्ते । हीणकमा कालं वा अस्सिय दवा दु भजिदवा ॥ ५३६ ॥ कृष्णादिराशिमावल्यसंख्यभागेन भक्त्वा प्रविभक्ते ।
हीनक्रमाः कालं वा आश्रित्य द्रव्याणि तु भक्तव्यानि ॥ ५३६ ॥ अर्थ संसारी जीवराशिमेंसे तीन शुभ लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण घटानेसे जो शेष रहै उतना कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्यावाले जीवोंका प्रमाण है । यह प्रमाण संसारी जीवराशिसे कुछ कम होता है । इस राशिमें आवली के असंख्यातमे भागका भाग देकर एक भागको अलग रखकर शेष बहुभागके तीन समान भाग करना । तथा शेष-अलग रक्खे हुए एक भागमें आवलीके असंख्यातमे भागका भाग देकर बहुभागको तीन समान भागोंमेंसे एक भागमें मिलानेसे कृष्णलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है । और शेष एक भागमें फिर आवलीके असंख्यातमे भागका भाग देनेसे लब्ध बहुभागको तीन समान भागोंमेंसे दूसरे भागमें मिलानेसे नीललेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है । और अवशिष्ट एक भागको तीसरे भागमें मिलानेसे कापोतलेश्यावाले जीवोंका प्रमाण होता है । इस प्रकार अशुभ लेश्यावालोंका द्रव्यकी अपेक्षासे प्रमाण कहा । यह प्रमाण उत्तरोतर कुछ २ घटता २ है। अब कालकी अपेक्षासे प्रमाण बताते हैं । कृष्ण नील कापोत तीन लेश्याओंका काल मिलानेसे जो अन्तर्मुहूर्तमात्र काल होता है, उसमें आवलीके असंख्यातमे भागका भाग देना । इसमें एक भागको जुदा रखना और बहुभागके तीन समान भाग करना । तथा अवशिष्ट एक भागमें आवलीके असंख्यातमे भागका फिर भाग देना । लब्ध एक भागको
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