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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । नीलुकस्संसमुदा पंचम अंधिंदयम्मि अवरमुदा । वालुकसंपजलिदे मज्झे मज्झेण जायंते ॥ ५२४ ॥
नीलोत्कृष्टांशमृताः पञ्चमान्धेन्द्रके अवरमृताः । ___ वालुकासंप्रज्वलिते मध्ये मध्येन जायन्ते ॥ ५२४ ॥ अर्थ-नीललेश्याके उत्कृष्ट अंशोके साथ मरे हुए जीव पाचमी पृथ्वीके द्विचरम पटलसम्बन्धी अन्ध्रनामक इन्द्रकबिल में उत्पन्न होते हैं । कोई २ पांचमे पटलमें भी उत्पन्न होते हैं । इतना विशेष और भी है कि कृष्णलेश्याके जघन्य अंशवाले भी जीव मरकर पांचमी पृथ्वीके अन्तिम पटल में उत्पन्न होते हैं । नीललेश्याके जघन्य अंशवाले जीव मरकर तीसरी पृथ्वीके अन्तिम पटलसम्बन्धी संप्रज्वलित नामक इन्द्रकबिलमें उत्पन्न होते हैं। नीललेश्याके मध्यम अंशोंवाले जीव मरकर तीसरी पृथ्वीके संप्रज्वलित नामक इन्द्रकबिलके आगे और पांचमी पृथ्वीके अन्ध्रनामक इन्द्रकबिलके ऊपर ऊपर जितने पटल और इन्द्रक हैं उनमें यथायोग्य उत्पन्न होते हैं।
वरकाओदंसमुदा संजलिदं जांति तदियणिरयस्स । सीमंतं अवरमुदा मज्झे मज्झेण जायते ॥ ५२५ ॥
वरकापोतांशमृताः संज्वलितं यान्ति तृतीयनिरयस्य ।
सीमन्तमवरमृता मध्ये मध्येन जायन्ते ॥ ५२५ ॥ अर्थ-कापोतलेश्याके उत्कृष्ट अंशोंके साथ मरे हुए जीव तीसरी पृथ्वीके द्विचरम पटलसम्बन्धी संज्वलित नामक इन्द्रकबिलमें उत्पन्न होते हैं। कोई २ अन्तिम पटलस. म्बन्धी संप्रज्वलित नामक इन्द्रकबिलमें भी उत्पन्न होते हैं । कापोतलेश्याके जघन्य अंशोंके साथ मरे हुए जीव प्रथम पृथ्वीके सीमन्त नामक प्रथम इन्द्रकबिलमें उत्पन्न होते हैं । और मध्यम अंशोके साथ मरे हुए जीव प्रथम पृथ्वीके सीमन्त नामक प्रथम इन्द्रकबिलसे आगे और तीसरी पृथ्वीके द्विचरम पटलसम्बन्धी संज्वलित नामक इन्द्रकबिलके ऊपर तीसरी पृथ्वीके सात पटल, दूसरी पृथ्वीके ग्यारह पटल और प्रथम पृथ्वीके बारह पटलोंमें यथायोग्य उत्पन्न होते हैं ।
किण्हचउक्काणं पुण मज्झंसमुदा हु भवणगादितिये । पुढवीआउवणप्फदिजीवेसु हवंति खलु जीवा ॥ ५२६ ॥ कृष्णचतुष्काणां पुनः मध्यांशमृता हि भवनकादित्रये ।
पृथिव्यव्वनस्पतिजीवेषु भवन्ति खलु जीवाः ॥ ५२६ ॥ अर्थ-कृष्ण नील कपोत इन तीन लेश्याओंके मध्यम अंशोंके साथ मरे हुए कर्मभूमियां मिथ्यादृष्टि तियेच वा मनुष्य, और पीतलेश्याके मध्यम अंशोंके साथ मरे हुए
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