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गोम्मटसारः ।
लेश्याओंके लक्षणाधिकारका निरूपण करते हैं ।
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चंडो ण मुच वेरं भंडणसीलो य धम्मदयरहिओ । दुट्ठो ण य एदि वसं लक्खणमेयं तु किण्हस्स ॥ ५०८ ॥ चण्डो न मुश्वति वैरं भण्डनशीलश्च धर्मदयारहितः ।
दुष्टो न चैति वशं लक्षणमेतत्तु कृष्णस्य ।। ५०८ ॥
अर्थ - तीन क्रोध करनेवाला हो, वैरको न छोड़े, युद्धकरनेका ( लड़नेका ) जिसका स्वभाव हो, धर्म और दयासे रहित हो, दुष्ट हो, जो किसीके भी वश न हो ये सब कृष्णलेश्यावालेके चिह्न ( लक्षण ) हैं ।
नीलेश्यावाले के चिह्न बताते हैं ।
मंद बुद्धिविहीण णिविण्णाणी य विसयलोलो य । मणी मायीय तहा आलस्सो चेव भेजो य ॥ ५०९ ॥ णिद्दावचनबहुलो घणघण्णे होदि तिवसण्णा य । लक्खणमेयं भणियं समासदो णीललेस्सस्स ॥ ५१० ॥ मन्द बुद्धिविहीन निर्विज्ञानी च विषयलोलश्च । मानी मायी च तथा आलस्यश्चैव भेद्यश्च ।। ५०९ ॥ निद्रावञ्चनबहुलो धनधान्ये भवति तीव्रसंज्ञश्च । लक्षणमेतद्भणितं समासतो नीललेश्यस्य ।। ५१० ॥
तीन गाथाओं में कपोत लेश्यावालेका लक्षण कहते हैं ।
अर्थ — काम करने में मन्द हो, अथवा स्वच्छन्द हो वर्तमान कार्य करनेमें विवेकरहित हो, कला चातुर्य से रहित हो, स्पर्शनादि पांच इन्द्रियोंके विषयोंमें लम्पट हो, मानी हो, मायाचारी हो, आलसी हो, दूसरे लोग जिसके अभिप्रायको सहसा न जान सके, तथा जो अति निद्रालु और दूसरोंको ठगने में अतिदक्ष हो, और धनधान्यके विषय में जिसकी अतितीव्र लालसा हो, ये नीललेश्यावालेके संक्षेपसे चिह्न बताये हैं ।
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रूसइ दिइ अण्णे दूसइ बहुसो य सोयभयबहुलो । असुयइ परिभवइ परं पसंसये अप्पयं बहुसो ॥ ५११ ॥ णय पत्तियइ परं सो अप्पाणं यिव परं पि मण्णंतो । थूसर अभित्थुवंतो ण य जाणइ हाणिवद्धिं वा ॥ ५१२ ॥ मरणं पत्थे रणे देह सुबहुगं वि थुवमाणो दु ।
ण गणइ कजाकज्जं लक्खणमेयं तु काउस्स ॥ ५१३ ॥
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