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गोम्मटसारः।
१५१ अंगुलमावलियाए भागमसंखेजदोवि संखेजो। अंगुलमावलियंतो आवलियं चांगुलपुधत्तं ॥४०३॥ . ___ अङ्गुलावल्योः भागोऽसंख्येयोऽपि संख्येयः ।।
अङ्गुलमावल्यन्त आवलिकम्वाङ्गुलपृथक्त्वम् ॥ ४०३ ॥ अर्थ-प्रथम काण्डकमें जघन्य क्षेत्रका प्रमाण घनामुलके असंख्यातमे भागप्रमाण, और उत्कृष्ट क्षेत्रका प्रमाण घनाङ्गुलके संख्यातमे भाग प्रमाण है । और जघन्य कालका प्रमाण आवलीका असंख्यातमा भाग, तथा उत्कृष्ट कालका प्रमाण आवलीका संख्यातमा भाग है । दूसरे काण्डकमें क्षेत्र घनाङ्गुलप्रमाण और काल कुछ कम एक आवली प्रमाण है । तीसरे काण्डकमें क्षेत्र घनाङ्गुल-पृथक्त्व और काल आवली-पृथक्त्व-प्रमाण है।
आवलियपुधत्तं पुण हत्थं तह गाउयं मुहुत्तं तु । जोयणभिण्णमुहुत्तं दिवसंतो पण्णुवीसं तु ॥४०४॥
आवलिपृथकूत्वं पुनः हस्तस्तथा गव्यूतिः मुहूर्तस्तु ।
योजनं भिन्नमुहूर्तःदिवसान्तः पञ्चविंशतिस्तु ॥ ४०४ ।। अर्थ-चतुर्थ काण्डकमें काल आवलीपृथक्त्व और क्षेत्र हस्तप्रमाण है । पाचमे काण्डकमें क्षेत्र एक कोश और काल अन्तर्मुहूर्त है । छटे काण्डकमें क्षेत्र एक योजन और काल भिन्नमुहूर्त है । सातमे काण्डकमें काल कुछ कम एक दिन और क्षेत्र पच्चीस योजन है।
भरहम्मि अद्धमासं साहियमासं च जम्बुदीवम्मि । वासं च मणुवलोए वासपुधत्तं च रुचगम्मि ॥ ४०५॥ भरते अर्धमासः साधिकमासश्च जम्बूद्वीपे ।
वर्षश्च मनुजलोके वर्षपृथक्त्वं च रुचके ।। ४०५ ॥ अर्थ-आठमे काण्डकमें क्षेत्र भरतक्षेत्र प्रमाण और काल अर्धमास ( पक्ष ) प्रमाण है । नौमे काण्डकमें क्षेत्र जम्बूद्वीप प्रमाण और काल एक माससे कुछ अधिक है । दशमे काण्डकमें क्षेत्र मनुष्यलोक प्रमाण और काल एक वर्षप्रमाण है । ग्यारहमे काण्डकमें क्षेत्र रुचक द्वीप और काल वर्षपृथकूत्वप्रमाण है।
संखेजपमे वासे दीवसमुद्दा हवंति संखेजा। वासम्मि असंखेजे दीवसमुद्दा असंखेजा ॥ ४०६ ॥ संख्यातप्रमे वर्षे द्वीपसमुद्रा भवन्ति संख्याताः ।
वर्षे असंख्येये द्वीपसमुद्रा असंख्येयाः ॥ ४०६ ॥ १ तीनसे नौ तककी संख्याको पृथकूत्व कहते हैं।
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