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गोम्मटसारः।
१४५ ऐसा समझना चाहिये; क्यों कि परमागमका ऐसा नियम है कि शरीर गृह ग्राम नगर आदिके प्रमाण उत्सेधाङ्गुलसे ही लिये जाते हैं। परन्तु आगे अङ्गुलशब्दसे प्रमाणाङ्गुल लेना चाहिये।
अवरोहिखेत्तमझे अवरोही अवरदवमवगमदि । तद्दवस्सवगाहो उस्सेहासंखघणपदरा ॥ ३८१ ॥
अवरावधिक्षेत्रमध्ये अवरावधिः अवरद्रव्यमवगच्छति ।
तद्रव्यस्थावगाहः उत्सेधासंख्यधनप्रतराः ॥ ३८१ ॥ अर्थ-जघन्य अवधि अपने जघन्य क्षेत्रमें जितने जघन्य द्रव्य हैं उन सबको जानत है । उस द्रव्यका अवगाह उत्सेधाङ्गुलके असंख्यातमे भागका धनप्रतर होता है। भावार्थयद्यपि जघन्य अवधिके क्षेत्रसे जघन्य द्रव्यके अवगाह क्षेत्रका प्रमाण असंख्यातगुणा हीन है; तथापि घनरूप उत्सेधाङ्गुलके असंख्यातमे भागमात्र है । इसकी भुजा कोटी तथा वेधका प्रमाण सूच्यंगुलके असंख्यातमे भाग है।
आवलिअसंखभागं तीदभविस्सं च कालदो अवरं । ओही जाणदि भावे कालअसंखेजभागं तु ॥ ३८२॥ आवल्यसंख्यभागमतीतभविष्यच्च कालतः अवरम् ।
अवधिः जानाति भावे कालासंख्यातभागं तु ॥ ३८२ ॥ अर्थ-जघन्य अवधि ज्ञान कालकी अपेक्षासे आवलीके असंख्यातमे भागप्रमाण द्रव्यकी व्यंजन पर्यायोंको जानता है । तथा जितनी पर्यायोंको कालकी अपेक्षासे जानता है उसके असंख्यातमे भागप्रमाण वर्तमान कालकी पर्यायोंको भावकी अपेक्षासे जानता है ।
इस प्रकार जघन्य देशावधि ज्ञानके विषयभूत द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सीमाको बताकर द्रव्यादि चतुष्टयकी अपेक्षासे देशावधि ज्ञानके विकल्पोंका वर्णन करते हैं ।
अवरहवादुवरिमदववियप्पाय होदि धुवहारो । सिद्धाणंतिमभागो अभवसिद्धादणंतगुणो ॥ ३८३ ॥
अवरद्रव्यादुपरिमद्रव्यविकल्पाय भवति ध्रुवहारः।।
सिद्धानन्तिमभागः अभव्यसिद्धादनन्तगुणः ॥ ३८३ ॥ अर्थ-जघन्य द्रव्यके ऊपर द्रव्यके दूसरे भेद निकालनेके लिये ध्रुवहार होता है । इसका (ध्रुवहारका) प्रमाण सिद्धराशिसे अनन्तमे भाग और अभव्यराशिसे अनन्तगुणा है। अवधि ज्ञानके विषयमें समयप्रबद्धका प्रमाण बताते हैं। .. धुवहारकम्मवग्गणगुणगारं कम्मवग्गणं गुणिदे।
समयपबद्धपमाणं जाणिजो ओहिविसयम्हि ॥ ३८४ ॥ गो. १९
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