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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
ख्यानावरण संज्वलन इसप्रकार चार भेद हैं । अनन्तानुबन्धी आदि चारोंके क्रोध मान माया लोभ इस तरह चार २ भेद होनेसे कषायके उत्तरभेद सोलह होते हैं । किन्तु कषायके उदयस्थानोंकी अपेक्षासे असंख्यात लोकप्रमाण भेद हैं । जो सम्यक्त्वको रोके उसको अनन्तानुबन्धी, जो देशचारित्रको रोके उसको अप्रत्याख्यानावरण, जो सकलचारित्रको रोके उसको प्रत्याख्यानावरण, जो यथाख्यातचारित्रको रोके उसको संज्वलन कषाय कहते हैं। शक्तिकी अपेक्षासे क्रोधादि चार कषायोंके चार गाथाओंद्वारा भेद गिनाते हैं ।
सिलपुढविभेदधूलीजलराइसमाणओ हवे कोहो । णारयतिरियणरामरगईसु उप्पायओ कमसो ॥ २८३ ॥ शिलापृथ्वीभेदधूलिजलराजिसमानको भवेत् क्रोधः ।
नारकतिर्यग्नरामरगतिषूत्पादकः क्रमशः ॥ २८३ ।। अर्थ-क्रोधं चार प्रकारका होता है । एक पत्थरकी रेखाके समान, दूसरा पृथ्वीकी रेखाके समान, तीसरा धूलिरेखाके समान, चौथा जलरेखाके समान । ये चारो प्रकारके क्रोध क्रमसे नरक तिर्यक् मनुष्य तथा देवगतिमें उत्पन्न करनेवाले हैं।
सेलटिकट्टवेत्ते णियभेएणणुहरंतओ माणो। णारयतिरियणरामरगईसु उप्पायओ कमसो ॥ २८४ ॥
शैलास्थिकाष्ठवेत्रान् निजभेदेनानुहरन् मानः।
नारकतिर्यग्नरामरगतिषूत्पादकः क्रमशः ॥ २८४ ॥ अर्थ-मान भी चार प्रकारका होता है । पत्थरके समान, हड्डीके समान, काठके समान, तथा उतके समान । ये चार प्रकारके मान भी क्रमसे नरक तिर्यञ्च मनुष्य तथा देव गतिके उत्पादक हैं । भावार्थ-जिस प्रकार पत्थर किसी तरह नहीं नमता, इस ही प्रकार जिसके उदयसे जीव किसी भी तरह नम्र न हो उसको शैलसमान ( पत्थरके समान ) मान कहते हैं। ऐसे मानकेउदयसे नरकगति उत्पन्न होती है । इस ही तरह अस्थिसमान ( हड्डीके समान ) आदिक मानको भी समझना चाहिये ।
वेणुवमूलोरब्भयसिंगे गोमुत्तए य खोरप्पे । सरिसी माया णारयतिरियणरामरगईसु खिबदि जियं ॥२८५॥ वेणूपमूलोरभ्रकशृङ्गेण गोमूत्रेण च क्षुरप्रेण ।
सदृशी माया नारकतिर्यग्नरामरगतिषु क्षिपति जीवम् ॥ २८५ ॥ अर्थ-माया भी चार प्रकारकी होती है । वांसकी जड़के समान, मेढ़ेके सींगके समान, गोमूत्रके समान, खुरपाके समान । यह चार तरहकी माया भी क्रमसे जीवको १ अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकारके क्रोधमें प्रत्येक क्रोधके ये चार २ भेद समझने चाहिये.
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