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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
हैं । इसके निमित्तसे विशिष्ट ( समीचीन ) अवधिज्ञानके भङ्ग होनेको (विपरीत होनेको ): विभङ्ग कहते हैं । यह इसका ( विभङ्गका ) निरुक्तिसिद्ध अर्थ है |
मतिज्ञानका स्वरूप, उत्पत्ति, कारण, भेद, विषय नौ गाथाओं में दिखाते हैं ।
अहि मुहणियमियवोहणमाभिणिवोहियमणिदिइंदियजम् । अवगहईहावायाधारणगा होंति पत्तेयं ॥ ३०५ ॥
अभिमुखनियमितबोधनमाभिनिबोधिकमनिन्द्रियेन्द्रियजम् । अवग्रहेहावायधारणका भवन्ति प्रत्येकम् ॥ ३०५ ॥
अर्थ -- इन्द्रिय और अनिन्द्रिय ( मन ) की सहायता से अभिमुख और नियमित पदाका जो ज्ञान होता है उसको आभिनिबोधिक कहते हैं । इसमें प्रत्येकके अवग्रह ईहा अवाय धारणा ये चार २ भेद हैं । भावार्थ-स्थूल वर्तमान योग्य क्षेत्रमें अवस्थित पढ़ार्थको अभिमुख कहते हैं । और जैसे चक्षुका रूप विषय है इस ही तरह जिस इन्द्रियका जो विषय निश्चित है उसको नियमित कहते हैं । इस तरहके पदार्थों का मन अथवा स्पर्शन आदिक पांच इन्द्रियोंकी सहायतासे जो ज्ञान होता है उसको मतिज्ञान कहते हैं । इस प्रकार मन और इन्द्रियकी अपेक्षासे मतिज्ञानके छह भेद हुए । इसमें भी प्रत्येक के reग्रह हा अवाय धारणा ये चार २ भेद होते हैं । प्रत्येक के चार २ भेद होते हैं इसलिये छहको चारसे गुणा करने पर मतिज्ञानके चौवीस भेद होते हैं ।
अवग्रह भी भेद आदिक दिखाते हैं ।
वेजण अत्यअवग्गह भेदा ह हवंति पत्तपत्तत्थे ।
कमसो ते वावरिदा पढमं ण हि चक्खुमणसाणं ॥ ३०६ ॥ व्यञ्जनार्थावग्रहभेदौ हि भवतः प्राप्ताप्राप्तार्थे ।
क्रमशस्तौ व्यपृतौ प्रथमो नहि चक्षुर्मनसोः ॥ ३०६ ॥
अर्थ - अवग्रह के दो भेद हैं, एक व्यञ्जनावग्रह दूसरा अर्थावग्रह । जो प्राप्त अर्थ विषय में होता है उसको व्यञ्जनावग्रह कहते हैं, और जो अप्राप्त अर्थ के विषय में होता है उसको अर्थावग्रह कहते हैं । और ये पहले व्यञ्जनावग्रह पीछे अर्थावग्रह इस क्रम से होते हैं । तथा व्यञ्जनावग्रह चक्षु और मनसे नहीं होता । भावार्थ-इन्द्रियों से प्राप्त = सम्बद्ध अर्थको व्यञ्जन कहते हैं, और अप्राप्त = असम्बद्ध पदार्थको अर्थ कहते हैं । और इनके ज्ञानको क्रमसे व्यञ्जनावग्रह, अर्थावग्रह कहते हैं । ( शङ्का ) राजवार्तिकादिकमें व्यञ्जन शब्दका अर्थ अव्यक्त किया है, और यहां पर प्राप्त अर्थ किया है, इस लिये परस्पर विरोध आता है । ( उत्तर ) व्यञ्जन शब्द के अनभिव्यक्ति तथा प्राप्ति दोनो अर्थ होते हैं । इसलिये इसका ऐसा अर्थ समझना चाहिये कि इन्द्रियोंसे सम्बद्ध होने पर भी जब तक प्रकट न
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