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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अथवा शब्दजन्य और लिङ्गजन्य इस तरहसे दो भेद हैं, इनमें मुख्य शब्दजन्य श्रुतज्ञान है। श्रुतज्ञानके भेद गिनाते हैं।
लोगाणमसंखमिदा अणक्खरप्पे हवंति छहाणा । वेख्वछट्ठवग्गपमाणं रूऊणमक्खरगं ॥ ३१५ ॥ ___ लोकानामसंख्यमितानि अनक्षरात्मके भवन्ति षट् स्था
नानि । द्विरूपषष्ठवर्गप्रमाणं रूपोनमक्षरगम् ॥ ३१५॥ अर्थ-अनन्तभागवृद्धि असंख्यातभागवृद्धि संख्यातभागवृद्धि संख्यातगुणवृद्धि असंख्यातगुणवृद्धि अनन्तगुणवृद्धि इन षट्स्थानपतित वृद्धिकी अपेक्षासे अनक्षरात्मक श्रुतज्ञानके सबसे जघन्य स्थानसे लेकर उत्कृष्ट स्थान पर्यन्त असंख्यातलोकप्रमाण भेद होते हैं । द्विरूपवर्गधारामें छडे वर्गका जितना प्रमाण है (एकठ्ठी) उसमें एक कम करनेसे जितना प्रमाण वाकी रहे उतना ही अक्षरात्मक श्रुतज्ञान का प्रमाण है भावार्थ-अनक्षरात्मक श्रुतज्ञानके असंख्यात भेद हैं । अपुनरुक्त अक्षरात्म श्रुतज्ञानके संख्यात भेद हैं, और पुनरुक्त अक्षरात्मकका प्रमाण इससे कुछ अधिक है। दूसरी तरहसे श्रुतज्ञानके भेद दो गाथाओमें गिनाते हैं।
पज्जायक्खरपदसंघादं पडिवत्तियाणिजोगं च । दुगवारपाहुडं च य पाहुडयं वत्थु पुवं च ॥ ३१६ ॥ तेसिं च समासेहि य वीसविहं वा हु होदि सुदणाणं । आवरणस्स वि भेदा तत्तियमेत्ता हवंतित्ति ॥ ३१७ ॥ पर्यायाक्षरपदसंघातं प्रतिपत्तिकानुयोगं च। द्विकवारप्राभृतं च च प्राभृतकं वस्तु पूर्व च ॥ ३१६ ॥ तेषां च समासैश्च विंशविधं वा हि भवति श्रुतज्ञानम् ।
आवरणस्यापि भेदाः तावन्मात्रा भवन्ति इति ॥ ३१७ ॥ अर्थ-पर्याय पर्यायसमास अक्षर अक्षरसमास पद पदसमास संघात संघातसमास प्रतिपत्तिक प्रतिपत्तिकसमास अनुयोग अनुयोगसमास प्राभृतप्राभृत प्राभृतप्राभृतसमास प्राभृत प्राभृतसमास वस्तु वस्तुसमास पूर्व पूर्वसमास, इस तरह श्रुतज्ञानके वीस भेद हैं । इस ही लिये श्रुतज्ञानावरण कर्मके भी वीस भेद होते हैं। किन्तु पर्यायावरण कर्मके विषयमें कुछ भेद है उसको आगेके गाथामें बतावेंगे। चार गाथाओंमें पर्याय ज्ञानका खरूप दिखाते हैं ।
णवरि विसेसं जाणे सुहमजहण्णं तु पजयं णाणं । पजायावरणं पुण तदणंतरणाणभेदम्हि ॥ ३१८ ॥
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