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गोम्मटसारः। कुलाचल महाह्द ( तलाव ) क्षेत्र कुंड वेदिका वन व्यन्तरोंके आवास महानदी आदिका वर्णन है । द्वीपसागरप्रज्ञप्तिमें असंख्यात द्वीप और समुद्रोंका खरूप तथा वहांपर होने. वाले अकृत्रिम चैत्यालयोंका वर्णन है। व्याख्याप्रज्ञप्तिमें भव्य अभव्य-भेद प्रमाण लक्षण रूपी अरूपी जीव अजीव द्रव्योंका और अनन्तरसिद्ध परंपरासिद्धोंका तथा दूसरी वस्तुओंका भी वर्णन है । दृष्टिवादके दूसरे भेद--सूत्रमें तीनसौ त्रेसठ मिथ्यादृष्टियोंका पूर्वपक्षपूर्वक निराकरण है। तीसरे भेद प्रथमानुयोगमें त्रेसठ शलाका-पुरुषोंका वर्णन है । चौथे पूर्वके चौदह भेद हैं । उनमें किस २ विषयका वर्णन है यह संक्षेपसे क्रमसे बताते हैं । उत्पादपूर्वमें प्रत्येक द्रव्यके उत्पाद व्यय दौव्य और उनके संयोगी धर्मोंका वर्णन है । आपायणीय पूर्वमें द्वादशङ्गमें प्रधानभूत सातसौ सुनय तथा दुर्णय पञ्चास्तिकाय षड्द्रव्य सप्त तत्व नव पदार्थ आदिका वर्णन है । वीर्यानुवादमें आत्मवीर्य परवीर्य उभयवीर्य कालवीर्य तपोवीर्य द्रव्यवीर्य गुणवीर्य पर्यायवीर्य आदि अनेकप्रकारके वीर्य ( सामर्थ्य ) का वर्णन है। अस्तिनास्तिप्रवादमें स्यादस्ति स्यान्नास्ति आदि सप्तभंगीका वर्णन है । ज्ञानप्रवादमें मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवल रूप प्रमाण-ज्ञान, तथा कुमति कुश्रुत विभङ्ग रूप अप्रमाण ज्ञानके स्वरूप संख्या विषय फलका वर्णन है । सत्यप्रवादमें आठ प्रकारके शब्दोच्चारणके स्थान, पांच प्रयत्न, वाक्यसंस्कार के कारण, शिष्ट दुष्ट शब्दों के प्रयोग, लक्षण, वचनके भेद, बारह प्रकारकी भाषा, अनेक प्रकारके असत्यवचन, दशप्रकारका सत्यवचन, वाग्गुप्ति, मौन आदिका वर्णन है । आत्मप्रवादमें आत्माके कर्तृत्व आदि अनेक धर्मों का वर्णन है । कर्मप्रवादमें मूलोत्तर प्रकृति तथा बंध उदय उदीरणा आदि कर्मकी अनेक अवस्थाओंका वर्णन है । प्रत्याख्यानपूर्वमें नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल भाव, पुरुषके संहनन आदिकी अपेक्षासे सदोष वस्तुका त्याग, उपवासकी विधि, पांच समिति, तीन गुप्ति आदिका वर्णन है। विद्यानुवादमें अंगुष्ठप्रसेना आदि सातसौ अल्पविद्या, तथा रोहिणी आदि पांचसौ महा विद्याओंका स्वरूप सामर्थ्य मन्त्र तन्त्र पूजा-विधान आदिका, तथा सिद्ध विद्याओंका फल और अन्तरिक्ष भौम अंग खर खप्न लक्षण व्यंजन छिन्न इन आठ महानिमित्तोंका वर्णन है । कल्याणवादमें तीर्थंकरादिके गर्भावतरणादि कल्याण, उनके कारण पुण्यकर्म षोडश भावना आदिका, तथा चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्रोंके चारका, ग्रहण शकुन आदिके फलका वर्णन है। प्राणावादमें कायचिकित्सा आदि आठ प्रकारके आयुर्वेदका, इडा पिंगला आदिका, दश प्राणों के उपकारक अपकारक द्रव्योंका गतियों के अनुसारसे वर्णन किया है । क्रियाविशालमें संगीत छंद अलङ्कार पुरुषोंकी बहत्तर कला स्त्रीके चौंसठ गुण, शिल्पादिविज्ञान, गर्भाधानादि क्रिया, नित्य नैमित्तिक क्रियाओंका वर्णन है । त्रिलोकबिन्दुसारमें लोकका खरूप, छत्तीस परिकर्म, आठ व्यवहार, चार बीज, मोक्षका स्वरूप, उसके गमनका कारण, क्रिया, मोक्षसुखके खरूपका वर्णन है । दृष्टिवादनामक बारहमे अंगका पाचमा
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