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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-चौदह मार्गणाओंका निरूपण करनेवाले अनुयोग ज्ञानके ऊपर पूर्वोक्त क्रमके अनुसार एक २ अक्षरकी वृद्धि होते २ जब चतुरादि अनुयोगोंकी वृद्धि होजाय तब प्राभृतप्राभृतक श्रुतज्ञान होता है । इसके पहले और अनुयोग ज्ञानके ऊपर जितने ज्ञानके विकल्प हैं वे सब अनुयोगसमासके भेद जानना।
अहियारो पाहुडयं एयट्ठो पाहुडस्स अहियारो। पाहुडपाहुडणामं होदित्ति जिणेहिं णिहिटं ॥ ३४॥
अधिकारः प्राभृतमेकार्थः प्राभृतस्याधिकारः ।
प्राभृतप्राभृतनामा भवतीति जिनैर्निर्दिष्टम् ॥ ३४०॥ अर्थ-प्रामृत और अधिकार ये दोनों एक अर्थके वाचक हैं । अत एव प्राभृतके अधिकारको प्राभृतप्राभृत कहते हैं, ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है । भावार्थ-वस्तुनाम श्रुतज्ञानके एक अधिकारको प्राभृत और अधिकारके अधिकारको प्राभृतप्राभूत कहते हैं । प्राभृतका खरूप बताते हैं।
दुगवारपाहुडादो उवरिं वण्णे कमेण चउवीसे । दुगवारपाहुडे संउढे खलु होदि पाहुडयं ॥ ३४१ ॥ द्विकवारप्राभृतादुपरि वर्णे क्रमेण चतुर्विशतौ ।
द्विकवारप्राभृते संवृद्धे खलु भवति प्राभृतकम् ॥ ३४१॥ अर्थ-प्राभृतप्राभृत ज्ञानके ऊपर पूर्वोक्त क्रमसे एक २ अक्षरकी वृद्धि होते २ जब चौवीस प्राभृतप्राभृतककी वृद्धि होजाय तब एक प्राभृतक श्रुत ज्ञान होता है । प्राभृतके पहले और प्राभृतप्राभृतके ऊपर जितने ज्ञानके विकल्प हैं वे सब ही प्राभृतप्राभृतसमासके भेद जानना । उत्कृष्ट प्राभृतप्राभृतसमासके भेदमें एक अक्षरकी वृद्धि होनेसे प्राभृत ज्ञान होता है। वस्तु श्रुतज्ञानका खरूप दिखाते हैं ।
वीसं वीसं पाहुडअहियारे एकवत्थुअहियारो। एकेकवण्णउड्डी कमेण सवत्थ णायवा ॥ ३४२ ॥ विंशतौ विंशतौ प्राभृताधिकारे एको वस्त्वधिकारः।
एकैकवर्णवृद्धिः क्रमेण सर्वत्र ज्ञातव्या ॥ ३४२ ॥ अर्थ-पूर्वोक्त क्रमानुसार प्राभृत ज्ञानके ऊपर एक २ अक्षरकी वृद्धि होते २ जब क्रमसे वीस प्राभृतकी वृद्धि होजाय तब एक वस्तु अधिकार पूर्ण होता है । वस्तु ज्ञानके पहले और प्राभूत ज्ञानके ऊपर जितने विकल्प हैं वे सब प्राभृतसमास ज्ञानके भेद हैं। उत्कृष्ट प्राभृतसमासमें एक अक्षरकी वृद्धि होनेसे वस्तुनामक श्रुतज्ञान पूर्ण होता है।
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