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गोम्मटसारः। अर्थ-अनन्त ( अनन्तानन्त ) परमाणुओंकी एक वर्गणा होती है । और अनन्त वर्गणाओंका नियमसे एक समयप्रबद्ध होता है ।
ताणं समयपबद्धा सेढिअसंखेजभागगुणिदकमा । णंतेण य तेजदुगा परं परं होदि सुहमं खु ॥ २४५॥
तेषां समयप्रबद्धाः श्रेण्यसंख्येयभागगुणितक्रमाः ।
___ अनन्तेन च तेजोद्विका परं परं भवति सूक्ष्मं खलु ॥ २४५॥ अर्थ-औदारिक वैक्रियिक आहारक इन तीन शरीरोंके समयप्रबद्ध उत्तरोत्तर क्रमसे श्रेणिके असंख्यातमे भागसे गुणित हैं । और तैजस तथा कार्मण अनन्तगुणे हैं । किन्तु ये पांचो ही शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं । भावार्थ-औदारिकसे वैक्रियिकके और वैक्रियिकसे आहारकके समयप्रबद्ध श्रेणिके असंख्यातमे भाग गुणित हैं। किन्तु आहारकसे तैजसके अनन्तगुणे और तैजससे कार्मणशरीरके समयप्रबद्ध अनन्तगुणे हैं । इस तरह समयप्रबद्धोंकी संख्याके अधिक २ होनेपर भी ये पांचो शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म २ हैं। औदारिकादिक शरीरोंके समयप्रबद्ध और वर्गणाओंका अवगाहनप्रमाण बताते हैं ।
ओगाहणाणि ताणं समयपबद्धाण वग्गणाणं च । अंगुलअसंखभागा उवरुवरिमसंखगुणहीणा ॥ २४६ ॥
अवगाहनानि तेषां समयप्रबद्धानां वर्गणानां च । _ अङ्गुलासंख्यभागा उपर्युपरि असंख्यगुणहीनानि ॥ २४६ ॥ अर्थ-इन शरीरोंके समयप्रबद्ध और वर्गणाओंकी अवगाहनाका प्रमाण सामान्यसे अंगुलके असंख्यातमे भाग है; किन्तु आगे आगेके शरीरोंके समयप्रबद्ध और वर्गणाओंकी अवगाहनाका प्रमाण क्रमसे असंख्यातगुणा २ हीन है। इस ही प्रमाणको माधवचन्द्र विद्यदेव भी कहते हैं ।
तस्समयबद्धवग्गणओगाहो सूइअंगुलासंख-। भागहिदविंदअंगुलमुवरुवरि तेण भजिदकमा ॥ २४७ ॥ तत्समयवद्धवर्गणावगाहः सूच्यङ्गुलासंख्य-।
भागहितवृन्दाङ्गुलमुपर्युपरि तेन भजितक्रमाः ॥ २४७ ॥ अर्थ-औदारिकादि शरीरोंके समयप्रबद्ध तथा वर्गणाओंका अवगाहन सूच्यङ्गुलके असंख्यातमे भागसे भक्त घनाङ्गुलप्रमाण है। और पूर्व २ की अपेक्षा आगे २ की अवगाहना क्रमसे असंख्यातगुणी २ हीन है ।
१ इस गाथाकी संस्कृतव्याख्या श्रीमदभयचन्द्रसूरीने और हिन्दीभाषा टीका विद्वद्वर्य श्रीटोडरमल्लजीने की है इसलिये हमने भी इसको यहांपर लिख दिया है। किन्तु केशववर्णी टीकामें इसकी व्याख्या हमारे देखनेमें नहीं आई है।
गो. १३
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