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गोम्मटसार ।
अर्थ -- बादर और सूक्ष्म दोंनो ही तरहके शरीरोंका प्रमाण घनानुके असंख्यातमे भागप्रमाण है । इनमें से स्थूल शरीर आधारकी अपेक्षा रखता है; किन्तु सूक्ष्म शरीर विना व्यवधानके सब जगह अनन्तानन्त भरे हुए हैं ।
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वनस्पतिकायका स्वरूप और भेद बताते हैं ।
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उदये दु वणफदिकम्मस्स य जीवा वणप्फदी होंति । पत्तेयं सामण्णं पदिट्ठिदिदति पत्तेयं ॥ १८४ ॥
उदये तु वनस्पतिकर्मणश्च जीवा वनस्पतयो भवन्ति । प्रत्येकं सामान्यं प्रतिष्ठितेतरे इति प्रत्येकम् ॥ १८४ ॥
अर्थ — वनस्पति नामकर्मके उदयसे जीव वनस्पतिकायिक होते हैं । उनके दो भेद हैं,
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एक प्रत्येक दूसरा साधारण । प्रत्येक के भी दो भेद हैं, प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित । भावार्थप्रत्येक उसको कहते हैं कि जिसके एक शरीरका एक जीव मालिक हो । जहां पर अनेक जीव समानरूपसे रहें उसको साधारण शरीर कहते हैं । प्रत्येक वनस्पति के दो भेद हैं । एक प्रतिष्ठित दूसरी अप्रतिष्ठित । प्रतिष्ठित प्रत्येक उसको कहते हैं कि जिस एक शरीर में एक जीवके मुख्यरूपसे रहनेपर भी उस जीवके आश्रय से अनेक निगोदिया जीव रहैं । और जहां पर एक मुख्य जीवके आश्रयसे अनेक निगोदिया जीव नहीं रहते उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं ।
मूलग्गपोरवीजा कंदा तह खंदबीजवीजरुहा ।
सम्मुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ॥ १८५ ॥
मूलाग्रपर्वबीजाः कन्दास्तथा स्कन्धबीजबीजरुहाः ।
सम्मूच्छिमाश्च भणिताः प्रत्येकानंतकायाश्च ।। १८५ ॥
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अर्थ – जिन वनस्पतियोंका बीज, मूल, अग्र, पर्व, कन्द, अथवा स्कन्ध है, अथवा जो बीज से ही उत्पन्न होजाती हैं, यद्वा सम्मूर्छन हैं, वे सभी वनस्पतियां सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित दोनो प्रकार की होती हैं । भावार्थ – वनस्पति अनेक प्रकारकी होती हैं । कोई तो मूलसे उत्पन्न होती हैं, जैसे अदरख हल्दी आदि । कोई अग्रसे उत्पन्न होती हैं जैसे गुलाब । कोई पर्वसे ( पंगोली ) उत्पन्न होती हैं, जैसे ईख वेंत आदि । कोई कन्दसे उत्पन्न होती हैं, जैसे सूरण आदि । कोई स्कन्धसे उत्पन्न होती हैं, जैसे ढाक । कोई अपने २ बीजसे उत्पन्न होती हैं, जैसे गेहूं चना आदि । कोई मट्टी जल आदिके सम्बन्धसे ही उत्पन्न होजाती हैं, जैसे घास आदि । परन्तु ये सब ही वनस्पति सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्येक दोनों प्रकारकी होती हैं ।