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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् ।
अर्द्धच्छेद राशिका प्रमाण एक वार आवली के असंख्यातमे भाग से भाजित पल्यको सागर में घटाने पर जो शेष रहे उतना है । दो वार आवलीके असंख्यातमे भाग से भाजित पल्यको सागरमें घटानेपर अप्रतिष्ठित प्रत्येक जीवोंके अर्द्धच्छेदोंका प्रमाण निकलता है । तीन वार आवली असंख्यातमे भागसे भाजित पल्यको सागरमें घटानेसे शेष प्रतिष्ठित प्रत्येक जीवोंके अर्द्धच्छेदों का प्रमाण होता है । चार वार आवलीके असंख्यातमे भागसे भाजित पल्यको सागर में घटाने से बादर पृथ्वीकायिक जीवोंके अर्धच्छेदों का प्रमाण निकलता है। पांच वार आवलीके असंख्यातमे भागसे भाजित पल्यको सागरमेंसे घटानेपर शेष बादर जलकायिक जीवोंके अर्द्धच्छेदोंका प्रमाण होता है । और बादर वातकायिक जीवोंके अर्द्धच्छेदों का प्रमाण पूर्ण सागर प्रमाण है ।
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विसेसेहिया पल्लासंखेजभागमेत्तेण ।
तम्हा ते रासीओ असंखलोगेण गुणिदकमा ॥ २१३ ॥ तेपि विशेषेणाधिकाः पल्यासंख्यातभागमात्रेण ।
तस्मात्ते राशयोऽसंख्यलोकेन गुणितक्रमाः ॥ २१३ ॥
अर्थ - ये प्रत्येक अर्द्धच्छेद राशि पल्यके असंख्यातमे २ भाग उत्तरोत्तर अधिक हैं । इसलिये ये सभी राशि ( तेजस्कायिकादि जीवों के प्रमाण ) क्रमसे उत्तरोत्तर असंख्यात लोकगुणी हैं । भावार्थ - बादर तेजस्कायिक जीवोंकी अपेक्षा अप्रतिष्ठित, और अप्रतिष्ठितकी अपेक्षा प्रतिष्ठित जीवोंके अर्द्धच्छेद पल्यके असंख्यातमे २ भाग अधिक हैं । इसी प्रकार पृथिवीकायिकादि के भी अर्द्धच्छेद पूर्व २ की अपेक्षा पल्य के असंख्यातमे भाग अधिक हैं । इस लिये पूर्व २ राशिकी अपेक्षा उत्तरोत्तर राशि (मूल) असंख्यात लोकगुणी है । उक्त असंख्यातलोकगुणितक्रमको निकालनेके लिये करणसूत्रको कहते हैं । दिण्णच्छेदे णवहिदच्छेदेहिं पयदविरलणं भजिदे । लद्धमिदरासीणण्णोष्णहदीए होदि पयदधणं ॥ २१४ ॥ देयच्छेदेनावहितेष्टच्छेदैः प्रकृतविरलनं भाजिते ।
लब्धमितेष्टराश्यन्योन्यहत्या भवति प्रकृतधनम् ॥ २१४ ॥
अर्थ — देयराशिके अर्द्धच्छेदोंसे भक्त इष्ट राशिके अर्धच्छेदों का प्रकृत विरलन राशिमें भाग देनेसे जो लब्ध आवे उतनी जगह इष्ट राशिको रखकर परस्पर गुणा करनेसे प्रकृतधन होता है । भावार्थ - इसकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है कि जब सोलह जगह दूआ माड़ ( सोलह जगह दोका अंक रखकर ) परस्पर गुणा करनेसे पण्णठ्ठी (६५५३६) उत्पन्न होती है तब ६४ जगह दुआ माड़ परस्परस्पर गुणा करनेसे कितनी राशि उत्पन्न होगी ? तो देयराशि दोके अर्धच्छेद एकका इष्टराशि पण्णट्टीके अर्धच्छेद सोलह में भागदेनेसे लब्ध
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