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गोम्मटसार।
कम करना। इस प्रकार शलाकात्रयनिष्ठापन कर चौथी वारकी स्थापित महाशलाकाराशिमेंसे पहली दूसरी तीसरी शलाका राशिका प्रमाण घटानेपर जो शेष रहे उतनी वार उक्त क्रमसे विरलन राशिका विरलन और देयराशिका परस्पर गुणाकार तथा शेष महाशलाकाराशिमेंसे एक २ कम करना । ऐसा करनेसे अन्तमें जो महाराशि उत्पन्न हो उतनाही तेजस्कायिक जीवोंका प्रमाण है । इस तेजस्कायिक जीवराशिमें असंख्यात लोकका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उस एक भागको तेजस्कायिक जीवराशिमें मिलानेपर पृथिवीकायिक जीवोंका प्रमाण निकलता है । और पृथिवीकायिक जीवों के प्रमाणमें असंख्यात लोकका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उस एक भागको पृथिवीकायिक जीवोंके प्रमाणमें मिलानेपर जलकायके जीवोंका प्रमाण निकलता है । जलकायके जीवों के प्रमाणमें असंख्यात लोकका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उस एक भागको जलकायकी जीवराशिमें मिलानेपर वायुकायिक जीवोंका प्रमाण निकलता है ।
अपदिछिदपत्तेया असंखलोगप्पमाणया होति । तत्तो पदिट्ठिदा पुण असंखलोगेण संगुणिदा ॥ २०४ ॥
अप्रतिष्ठितप्रत्येका असंख्यलोकप्रमाणका भवन्ति ।
ततः प्रतिष्ठिताः पुनः असंख्यलोकेन संगुणिताः ॥ २०४ ॥ __ अर्थ-अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव असंख्यातलोकप्रमाण है, और इससे भी असंख्यातलोकगुणा प्रतिष्ठितप्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवोंका प्रमाण है।
तसरासिपुढविआदीचउक्कपत्तेयहीणसंसारी। साहारणजीवाणं परिमाणं होदि जिणदिटुं॥ २०५ ॥ त्रसराशिपृथिव्यादिचतुष्कप्रत्येकहीनसंसारी ।
साधारणजीवानां परिमाणं भवति जिनदिष्टम् ॥ २०५ ॥ अर्थ-सम्पूर्ण संसारी जीवराशिमेंसे, त्रस, पृथिव्यादि चतुष्क ( पृथिवी अप् तेज वायु ) प्रत्येक वनस्पतिकायका प्रमाण घटानेसे जो शेष रहे उतना ही साधारण जीवोंका प्रमाण है ऐसा जिनेन्द्रदेवने कहा है।
सगसगअसंखभागो बादरकायाण होदि परिमाणं । सेसा सुहमपमाणं पडिभागो पुवणिदिवो ॥ २०६॥ स्वकस्वकासंख्यभागो बादरकायानां भवति परिमाणम् ।
शेषाः सूक्ष्मप्रमाणं प्रतिभागः पूर्वनिर्दिष्टः ॥ २०६ ॥ .. अर्थ-अपनी २ राशिका असंख्यातमा भाग बादरकाय जीवोंका प्रमाण है । और .
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