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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । इन्द्रियोंका विषयक्षेत्र बताकर अब उनका आकार बताते हैं ।
चक्खू सोदं घाणं जिब्भायारं मसूरजवणाली। अतिमुत्तखुरप्पसमं फासं तु अणेयसंठाणं ॥ १७ ॥ चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिव्हाकारं मसूरयवनाल्य-।
तिमुक्तक्षुरप्रसमं स्पर्शनं तु अनेकसंस्थानम् ॥ १७० ॥ अर्थ-मसूरके समान चक्षुका जवकी नलीके समान श्रोत्रका तिलके फूलके समान प्राणका तथा खुरपाके समान जिव्हाका आकार है । और स्पर्शनेन्द्रियके अनेक आकार हैं ।
इन्द्रियोंके ( द्रव्येन्द्रियोंके ) आकारमें जो आत्माके प्रदेश हैं उनका अवगाहन प्रमाण बताते हैं।
अंगुलअसंखभाग संखेजगुणं तदो विसेसहियं । तत्तो असंखगुणिदं अंगुलसंखेजयं तत्तु ॥ १७१ ॥ अकुलासंख्यभागं संख्यातगुणं ततो विशेषाधिकम् ।
ततोऽसंख्यगुणितमङ्गुलसंख्यातं तत्तु ॥ १७१ ॥ अर्थ-आत्मप्रदेशोंकी अपेक्षा चक्षुरिन्द्रियको अवगाहन धनामुलके असंख्यातमे भागप्रमाण है। और इससे संख्यातगुणा श्रोत्रेन्द्रियका अवगाहन है । श्रोत्रेन्द्रियका जितना प्रमाण है उससे पत्यके असंख्यातमे भाग अधिक घ्राणेन्द्रियका अवगाहन है । घ्राणेन्द्रियके अवगाहसे पल्यके असंख्यातमे भाग गुणा रसनेन्द्रियका अवगाहन है । परन्तु सामान्यकी अपेक्षा गुणाकार और भागहारका अपवर्तन करनेसे उक्त चारों ही इन्द्रियोंका अवगाहन प्रमाण धनाङ्गुलके संख्यातमे भागमात्र है । स्पर्शनेन्द्रियके प्रदेशोंका अवगाहनप्रमाण बताते हैं ।
सुहमणिगोदअपजत्तयस्स जादस्स तदियसमयसि । अङ्गुलअसंखभागं जहण्णमुक्कस्सयं मच्छे ॥ १७२ ॥ सूक्ष्मनिगोदापर्याप्तकस्य जातस्य तृतीयसमये ।
अङ्गुलासंख्यभागं जघन्यमुत्कृष्टकं मत्स्ये ॥ १७२ ।। अर्थ-स्पर्शनेन्द्रियकी जघन्य अवगाहना घनाङ्गुलके असंख्यातमे भाग प्रमाण है। और यह अवगाहना सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तकके उत्पन्न होनेसे तीसरे समयमें होती है । उत्कृष्ट अवगाहना महामत्स्यके होती है इसका प्रमाण संख्यातघनाङ्गुल है ।
द्रव्येन्द्रियके दो भेद हैं, निर्वृति और उपकरण । निर्वृतिके भी दो भेद हैं, बाह्य तथा आभ्यन्तर । यहापर आभ्यन्तर निर्वृतिरूप द्रव्येन्द्रियका प्रमाण बताते हैं ।
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